ओम के नियम की परिभाषा
जब किसी चालक की
भौतिक अवस्था (लंबाई, ताप) मैं कोई
परिवर्तन नहीं हो रहा हो तो चालक में प्रवाहित धारा उसके सिरो के बीच आरोपित
विभवान्तर के अनुक्रमानूपाती होती है
यदि भौतिक
अवस्थायें जैसे की ताप, लंबाई इत्यादि
स्थिर हो, तब किसी विधुत
परिपथ में प्रतिरोध के सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर (वोल्टेज) उस प्रतिरोध में
प्रवाहित होने वाली धारा (flow
of current) के समानुपाती होता है।
यदि चालक के सिरो
के बीच आरोपित विभवान्तर v
ओर उसमें
प्रवाहित धारा I हो तो
v ∝ I
v= RI
(जहां R एक नितांक है, इसे चालक का
प्रतिरोध कहते हैं।)
R=v/I
प्रतिरोध =
विभवान्तर / धारा
ओम के नियम की
शर्तें
1. चालक का ताप नियत
रहना चाहिए।
2. चालक मे कोई
विकृति नहीं होना चाहिए।
ओम के नियम का सत्यापन
कोई चालक ओम के
नियम का पालन कर रहा है या नहीं इस बात का पता लगाने के लिए चालक के सिरे के बीच
भिन्न - भिन्न मानो के विभवान्तर लगाकर उसमें प्रवाहित धारा को नोट करते है। तथा
विभवान्तर ओर धारा के मध्य ग्राफ खींचते है यह ग्राफ सरल रेखा प्राप्त होता है। तो
चालक ओम के नियम का पालन करता है।
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