रॉकेट शब्द का
प्रयोग आज कई रूपों में किया जाता है युद्ध में प्रक्षेपणास्त्रों (Missiles) के लिए भी रॉकेट
शब्द का प्रयोग होता है अंतरिक्ष में ग्रहों और उपग्रहों के विषय में जानकारी
प्राप्त करने के लिए, जिन यानों का
इस्तेमाल किया जाता है, उन्हें भी रॉकेट
कहते हैं |
आतिशबाजी में भी
रॉकेट शब्द का प्रयोग होता है रॉकेट शब्द चाहे किसी भी रूप में प्रयोग किया जाए, लेकिन सभी
रॉकेटों का कार्य करने का सिद्धांत एक ही है प्रत्येक रॉकेट न्यूटन के गति के गति
के तीसरे नियम के अनुसार कार्य करता है इस नियम के अनुसार प्रत्येक क्रिया के
फलस्वरूप समान और उलटी दिशा में प्रतिक्रिया होती है इसी नियम के आधार पर रॉकेट
आगे बढ़ता है |
रॉकेट में रखा हुआ ईंधन जब जलता है और उससे पैदा हुई गैसें अधिक दबाव के साथ छोटी सी नली से पीछे की और बाहर निकलती हैं, तो इस क्रिया के फलस्वरूप रॉकेट को आगे बढ़ने के लिए जरुरी धक्का प्राप्त होता है आज अनेकों ग्रहों, उपग्रहों के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए रॉकेट इस्तेमाल किए जाते हैं
रॉकेट में रखा हुआ ईंधन जब जलता है और उससे पैदा हुई गैसें अधिक दबाव के साथ छोटी सी नली से पीछे की और बाहर निकलती हैं, तो इस क्रिया के फलस्वरूप रॉकेट को आगे बढ़ने के लिए जरुरी धक्का प्राप्त होता है आज अनेकों ग्रहों, उपग्रहों के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए रॉकेट इस्तेमाल किए जाते हैं
रॉकेट का विकास
कैसे हुआ ?
रॉकेट के विकास
की कहानी चीन से शुरू होती है इसका आविष्कार किसी एक वैज्ञानिक ने नहीं किया इसके
विकास में बहुत लम्बा समय लगा है सन 1232 में मंगोलों के खिलाफ लड़ाई में चीन के लोगों ने अग्निवाणों
(Arrows of Flying Fire) का इस्तेमाल किया
था ये एक प्रकार के रॉकेट ही थे 1275 तक रॉकेट का इस्तेमाल भारत, इंगलैंड, अरब देश, जर्मनी, फ़्रांस आदि देशों में होने लगा था 500 साल बाद
अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई में भारतीय सेना ने रॉकेटों का प्रयोग किया था
18 वीं सदी में हैदरअली और टीपू सुल्तान आदि ने भी युद्ध में रॉकेट का प्रयोग किया था जैसे-जैसे समय बीतता गया, रॉकेटोंका इस्तेमाल युद्ध में कम होता गया, लेकिन अंतरिक्ष अनुसंधानों में रॉकेट का प्रयोग बढ़ता गया
18 वीं सदी में हैदरअली और टीपू सुल्तान आदि ने भी युद्ध में रॉकेट का प्रयोग किया था जैसे-जैसे समय बीतता गया, रॉकेटोंका इस्तेमाल युद्ध में कम होता गया, लेकिन अंतरिक्ष अनुसंधानों में रॉकेट का प्रयोग बढ़ता गया
रॉकेटों का
वास्तविक विकास अंतरिक्ष के रहस्यों का पता लगाने के लिए 19 वीं सदी के
मध्यं में शुरू हुआ इनके निर्माण में बहुत से सुधार किए गए अक्टूबर १९५८ में
अमेरिका ने पायनियर (Pioneer)
नाम का रॉकेट
चन्द्रमा तक पहुंचने के लिए छोड़ा यह चन्द्रमा तक तो नहीं पहुंच पाया, लेकिन इससे कई
महत्वपूर्ण बाते पता चलीं अंतरिक्ष अनुसंधान व चाँद सितारों के लिए 18000 मील प्रति धंटा
या इससे अधिक वेग वाले रॉकेटों की आवश्यकता होती है
पृथ्वी के
गुरुत्वक्षर्ण क्षेत्र से बाहर निकलने के लिए रॉकेट का वेग 40,000 कि.मी. (25,000 मील) प्रति घंटा
होना जरुरी होता है अब तो रॉकेटों का प्रयोग शुक्र और मंगल जैसे ग्रहों तक जाने के
लिए भी किया जा रहा है अमेरिका और रूस ने रॉकेटों के विकास की दुनिया में एक
क्रांति ला दी है |
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