हिन्दी व्याकरण के शुरुआती विद्वान कामता प्रसाद गुरु के
अनुसार हिन्दी में ‘ज्ञ’ का उच्चारण बहुधा ‘ग्यँ’ के सदृश होता है।
मराठी लोग इसका उच्चारण ‘द्न्यँ’ के समान करते हैं। पर इसका उच्चारण प्रायः ‘ज्यँ’ के समान है। श्याम सुन्दर दास के ‘हिंदी शब्दसागर’ में ‘ज्ञ’ की परिभाषा में कहा गया है, ज और ञ के संयोग
से बना हुआ संयुक्त अक्षर।
केंद्रीय हिंदी निदेशालय ने जो मानक वर्तनी तैयार की है
उसमें देवनागरी वर्णमाला के लिए उच्चारणों को स्पष्ट करते हुए कहा है, “क्ष, त्र, ज्ञ और श्र भले ही
वर्णमाला में दिए जाते हैं किंतु ये एकल व्यंजन नहीं हैं। वस्तुत : ये क्रमशः: क्
+ ष, त् + र, ज् + ञ और श् + र के व्यंजन – संयोग हैं।” इसके अनुसार ‘ज्ञ’ को ज् + ञ का संयोग माना
जाए।
इंटरनेट पर इस विषय पर बहस चलती रहती है। विज्ञान के साथ
हिंदी और संस्कृत के विदवान योगेन्द्र जोशी के अनुसार, आम तौर पर हिंदीभाषी इसे ‘ग्य’ बोलते हैं,
जो अशुद्ध किंतु सर्वस्वीकृत है। तदनुसार इसे
रोमन में gya लिखा जाएगा जैसा
आम तौर पर देखने को मिलता है। दक्षिण भारत (jna) तथा महाराष्ट्र (dnya) में स्थिति कुछ भिन्न है। संस्कृत के अनुसार होना क्या
चाहिए यदि इसका उत्तर दिया जाना हो तो किंचित् गंभीर विचारणा की आवश्यकता होगी।
उन्होंने लिखा है, मेरी टिप्पणी
वरदाचार्यरचित ‘लघुसिद्धांतकौमुदी’
और स्वतः अर्जित संस्कृत ज्ञान पर आधारित है।
मेरी जानकारी के अनुसार ‘ज्ञ’ केवल संस्कृत मूल
के शब्दों/पदों में प्रयुक्त होता है। मेरे अनुमान से ऐसे शब्द/पद शायद हैं ही
नहीं, जिनमें ‘ञ’ स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त हो।...‘ज्ञ’ वस्तुतः ‘ज’ एवं ‘ञ’ का संयुक्ताक्षर है। ये दोनों संस्कृत व्यंजन वर्णमाला के ‘चवर्ग’ के क्रमशः तृतीय एवं पंचम वर्ण हैं। जानकारी होने के बावजूद मेरे मुख से ‘ज्ञ’ का सही उच्चारण नहीं निकल पाता है। पिछले पांच दशकों से ‘ग्य’ का जो उच्चारण जबान से चिपक चुका है उससे छुटकारा नहीं मिल पा रहा है। आपको
हिंदी शब्दकोशों में ‘ज्ञ’ से बनने वाले
शब्द प्रायः ‘ज’ के बाद मिलेंगे।
हिन्दी भाषा के विवेचन पर लिखने वाले अजित वडनेरकर के
अनुसार देवनागरी के ‘ज्ञ’ वर्ण ने अपने उच्चारण का महत्व खो दिया है।
मराठी में यह ग+न+य का योग हो कर ग्न्य सुनाई पड़ती है तो महाराष्ट्र के ही कई
हिस्सों में इसका उच्चारण द+न+य अर्थात् द्न्य भी है। गुजराती में ग+न यानी ग्न है
तो संस्कृत में ज+ञ के मेल से बनने वाली ध्वनि है।
दरअसल इसी ध्वनि के लिए मनीषियों ने देवनागरी लिपि में ज्ञ संकेताक्षर बनाया मगर सही उच्चारण बिना समूचे हिन्दी क्षेत्र में इसे ग+य अर्थात ग्य के रूप में बोला जाता है। ज+ञ के उच्चार के आधार पर ज्ञान शब्द से जान अर्थात जानकारी, जानना जैसे शब्दों की व्युत्पत्ति हुई। अनजान शब्द उर्दू का जान पड़ता है मगर वहां भी यह हिन्दी के प्रभाव में चलने लगा है। मूलतः यह हिन्दी के जान यानी ज्ञान से ही बना है जिसमें संस्कृत का अन् उपसर्ग लगा है।
दरअसल इसी ध्वनि के लिए मनीषियों ने देवनागरी लिपि में ज्ञ संकेताक्षर बनाया मगर सही उच्चारण बिना समूचे हिन्दी क्षेत्र में इसे ग+य अर्थात ग्य के रूप में बोला जाता है। ज+ञ के उच्चार के आधार पर ज्ञान शब्द से जान अर्थात जानकारी, जानना जैसे शब्दों की व्युत्पत्ति हुई। अनजान शब्द उर्दू का जान पड़ता है मगर वहां भी यह हिन्दी के प्रभाव में चलने लगा है। मूलतः यह हिन्दी के जान यानी ज्ञान से ही बना है जिसमें संस्कृत का अन् उपसर्ग लगा है।
प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार की धातु gno का ग्रीक रूप भी ग्नो ही रहा मगर लैटिन में बना
gnoscere और फिर अंग्रेजी में ‘ग’ की जगह ‘क’ ने ले और gno का रूप हो गया know हो गया। बाद में नॉलेज जैसे कई अन्य शब्द भी बने। रूसी का ज्नान (जानना),
अंग्रेजी का नोन (ज्ञात) और ग्रीक भाषा के
गिग्नोस्को (जानना), ग्नोतॉस(ज्ञान)
और ग्नोसिस (ज्ञान) एक ही समूह के सदस्य हैं। गौर करें हिन्दी-संस्कृत के ज्ञान
शब्द से इन विजातीय शब्दों के अर्थ और ध्वनि साम्य पर।
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