कारक की परिभाषा (Case)
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उसका सीधा संबंध क्रिया के
साथ ज्ञात हो वह कारक कहलाता है |
जैसे-गीता ने दूध पीया | इस वाक्य में ‘गीता’ पीना क्रिया का कर्ता है और दूध उसका कर्म | अतः ‘गीता’ कर्ता कारक है और ‘दूध’ कर्म कारक |
कारक विभक्ति-
संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों के बाद ‘ने, को, से, के लिए’, आदि जो चिह्न
लगते हैं वे चिह्न कारक विभक्ति कहलाते हैं |
कारक के भेद:-
हिन्दी में आठ कारक होते हैं | उन्हें विभक्ति
चिह्नों सहित नीचे देखा जा सकता है- कारक विभक्ति चिह्न (परसर्ग)
1. कर्ता ने
2. कर्म को
3. करण से, के साथ, के द्वारा
4. संप्रदान के लिए, को
5. अपादान से (पृथक)
6. संबंध का, के, की
7. अधिकरण में, पर
8. संबोधन हे! हरे !
कारक चिह्न स्मरण करने के लिए इस पद की रचना की गई हैं-
कर्ता ने अरु कर्म को, करण रीति से जान |
संप्रदान को, के लिए, अपादान से मान | |
का, के, की, संबंध हैं, अधिकरणादिक में
मान |
रे ! हे ! हो ! संबोधन, मित्र धरहु यह ध्यान | |
विशेष-कर्ता से अधिकरण तक विभक्ति चिह्न (परसर्ग) शब्दों के
अंत में लगाए जाते हैं, किन्तु संबोधन
कारक के चिह्न-हे, रे, आदि प्रायः शब्द से पूर्व लगाए जाते हैं |
1. कर्ता कारक
जिस रूप से क्रिया (कार्य) के करने वाले का बोध होता है वह ‘कर्ता’ कारक कहलाता है | इसका विभक्ति-चिह्न ‘ने’ है | इस ‘ने’ चिह्न का वर्तमानकाल और
भविष्यकाल में प्रयोग नहीं होता है | इसका सकर्मक
धातुओं के साथ भूतकाल में प्रयोग होता है |
जैसे-
1.राम ने रावण को मारा |
2.लड़की स्कूल जाती है |
पहले वाक्य में क्रिया का कर्ता राम है | इसमें ‘ने’ कर्ता कारक का
विभक्ति-चिह्न है | इस वाक्य में ‘मारा’ भूतकाल की क्रिया है | ‘ने’ का प्रयोग प्रायः भूतकाल में होता है | दूसरे वाक्य में
वर्तमानकाल की क्रिया का कर्ता लड़की है | इसमें ‘ने’ विभक्ति का प्रयोग नहीं हुआ है |
विशेष-
(1) भूतकाल में अकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ भी
ने परसर्ग (विभक्ति चिह्न) नहीं लगता है | जैसे-वह हँसा |
(2) वर्तमानकाल व भविष्यतकाल की सकर्मक क्रिया के
कर्ता के साथ ने परसर्ग का प्रयोग नहीं होता है | जैसे-वह फल खाता
है | वह फल खाएगा |
(3) कभी-कभी कर्ता के साथ ‘को’ तथा ‘स’ का प्रयोग भी किया जाता है | जैसे-
(अ) बालक को सो जाना चाहिए |
(आ) सीता से पुस्तक पढ़ी गई |
(इ) रोगी से चला भी नहीं जाता |
(ई) उससे शब्द लिखा नहीं गया |
2. कर्म कारक
क्रिया के कार्य का फल जिस पर पड़ता है, वह कर्म कारक कहलाता है | इसका विभक्ति-चिह्न ‘को’ है | यह चिह्न भी बहुत-से स्थानों पर नहीं लगता | जैसे-
1. मोहन ने साँप को मारा |
2. लड़की ने पत्र लिखा | पहले वाक्य में ‘मारने’ की क्रिया का फल
साँप पर पड़ा है | अतः साँप कर्म कारक है | इसके साथ परसर्ग ‘को’ लगा है |
दूसरे वाक्य में ‘लिखने’ की क्रिया का फल पत्र पर
पड़ा | अतः पत्र कर्म कारक है | इसमें कर्म कारक का विभक्ति चिह्न ‘को’ नहीं लगा |
3. करण कारक
संज्ञा आदि शब्दों के जिस रूप से क्रिया के करने के साधन का
बोध हो अर्थात् जिसकी सहायता से कार्य संपन्न हो वह करण कारक कहलाता है | इसके विभक्ति-चिह्न ‘से’ के ‘द्वारा’ है |
जैसे-
1.अर्जुन ने जयद्रथ को बाण से मारा |
2. बालक गेंद से खेल रहे है |
पहले वाक्य में कर्ता अर्जुन ने मारने का कार्य ‘बाण’ से किया | अतः ‘बाण से’ करण कारक है | दूसरे वाक्य में
कर्ता बालक खेलने का कार्य ‘गेंद से’ कर रहे हैं | अतः ‘गेंद से’ करण कारक है |
4. संप्रदान कारक
संप्रदान का अर्थ है-देना | अर्थात कर्ता
जिसके लिए कुछ कार्य करता है, अथवा जिसे कुछ
देता है उसे व्यक्त करने वाले रूप को संप्रदान कारक कहते हैं | इसके विभक्ति चिह्न ‘के लिए’ को हैं |
जैसे:-
1.स्वास्थ्य के लिए सूर्य को नमस्कार करो |
2.गुरुजी को फल दो |
इन दो वाक्यों में ‘स्वास्थ्य के लिए’ और ‘गुरुजी को’ संप्रदान कारक हैं |
5. अपादान कारक
संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी से अलग होना पाया
जाए वह अपादान कारक कहलाता है | इसका
विभक्ति-चिह्न ‘से’ है |
जैसे-
1.बच्चा छत से गिर पड़ा |
2.संगीता घोड़े से गिर पड़ी |
इन दोनों वाक्यों में ‘छत से’ और घोड़े ‘से’ गिरने में अलग होना प्रकट होता है | अतः घोड़े से और
छत से अपादान कारक हैं |
6. संबंध कारक
शब्द के जिस रूप से किसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु से संबंध
प्रकट हो वह संबंध कारक कहलाता है | इसका विभक्ति
चिह्न ‘का’, ‘के’, ‘की’, ‘रा’, ‘रे’, ‘री’ है |
जैसे-
1.यह राधेश्याम का बेटा है |
2.यह कमला की गाय है |
इन दोनों वाक्यों में ‘राधेश्याम का बेटे’ से और ‘कमला का’ गाय से संबंध प्रकट हो रहा है | अतः यहाँ संबंध कारक है |
7. अधिकरण कारक
शब्द के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है उसे
अधिकरण कारक कहते हैं | इसके विभक्ति-चिह्न ‘में’, ‘पर’ हैं |
जैसे-
1. भँवरा फूलों पर मँडरा रहा है |
2. कमरे में टी.वी. रखा है |
इन दोनों वाक्यों में ‘फूलों पर’ और ‘कमरे में’ अधिकरण कारक है |
8. संबोधन कारक
जिससे किसी को बुलाने अथवा सचेत करने का भाव प्रकट हो उसे
संबोधन कारक कहते है और संबोधन चिह्न (!) लगाया जाता है |
जैसे-
1.अरे भैया! क्यों रो रहे हो?
2.हे गोपाल! यहाँ आओ |
इन वाक्यों में ‘अरे भैया’ और ‘हे गोपाल’! संबोधन कारक है |
कोई टिप्पणी नहीं: