यह पृष्ठ भारत की
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इन्कलाब जिंदाबाद नारा किसने दिया
इन्कलाब जिंदाबाद का
नारा भारत की आज़ादी के समय दिया गया था यह उस वक्त भारतीय आवाम में आम हो गया जब
वर्ष 1929 को क्रांतिकारी भगत सिंह ने
सेंट्रल असेंबली दिल्ली में धमाका करने के बाद इस नारे को दोहराया उसके बाद यह
नारा भारत की हर गली में गूंजने लगा
किसने दिया: भगत
सिंह
कब दिया: वर्ष 1929 में
रचयिता: उर्दू भाषा
के कवि “हसरत मोहानी” इस नारे के असली जन्म दाता हैं यह नारा उन्ही की कलम द्वारा
वर्ष 1921 में लिखा गया था
अर्थ: इन्कलाब
जिंदाबाद का अर्थ होता है “क्रांति सदा ज़िंदा रहे...
या क्रांति अमर रहे...” इस अर्थ को इस प्रकार समझने
के प्रयास कीजिए... इन्कलाब (अर्थात: क्रांति, विद्रोह) तथा जिंदाबाद (अर्थात: सदा जीवित रहने वाला, अमर रहने वाला) इस प्रकार इन्कलाब जिंदाबाद का सामूहिक अर्थ
हुआ “क्रांति अमर रहे...”
लक्ष्य: इस नारे का
मुख्य लक्ष्य क्रांतिकारियों तथा भारत की आवाम में आजादी की आग को तब तक जलाए रखना
था जब तक भारत को गुलामी की ज़ंजीरो से आज़ाद ना कर दिया जाए तथा वक्त के साथ साथ यह
नारा हर क्रांतिकारी की जुबां पर गूंजने लगा था
दिल्ली चलो नारा किसने दिया
“दिल्ली चलो” का नारा भारत की आज़ादी के लिए प्रयासरत क्रांतिकारी सुभाष
चन्द्र बोस ने वर्ष 1942 में “आजाद हिन्द फ़ौज” को दिया आजाद हिन्द फ़ौज के मुखर नेता और मार्गदर्शक होते हुए सुभाष चन्द्र बोस
ने जब महसूस किया कि इंग्लैंड द्वितीय विश्व युद्ध में उलझता जा रहा है तब उस समय
यह नारा देकर उन्होंने फ़ौज का मार्गदर्शन किया आज़ाद हिन्द फ़ौज को इंडियन नेशनल
आर्मी के नाम से भी जाना जाता था जिसे जापान की सहायता से मिलकर संगठित किया गया
था
किसने दिया: सुभाष
चन्द्र बोस
कब दिया: 1942
लक्ष्य: सुभाष
चन्द्र बोस का मानना था कि ब्रिटिश हकूमत स्वयं से कभी भी भारत को आज़ाद नही करेगी
इसके लिए ब्रिटिश हकूमत से विद्रोह कर लड़ना पड़ेगा इसी कारण उन्होंने लगभग 40 हजार सैनिकों वाली इस सेना का नेतृत्व किया तथा दिल्ली पर
अधिक्रमण तथा ब्रिटिश सरकार को भारत से निकाल बाहर करने के उद्देश्य से दिल्ली चलो
का नारा दिया
करो या मरो का नारा किसने दिया
अहिंसावादी सोच का
अनुसरण करने वाले महात्मा गाँधी जिन्होंने अंतत: भारत की आज़ादी को हासिल करने में
अहम् योगदान निभाया, ने वर्ष 1942 में यह नारा दिया गाँधी जी द्वारा यह नारा बॉम्बे में अखिल
भारतीय कांग्रेस की हुई बैठक का संबोधन करते हुए दिया गया इससे पूर्व भी गाँधी जी
ने असयोग आन्दोलन जैसे प्रयासों से ब्रिटिश सरकार की नींव को हिला दिया था वर्ष 1940 के पश्चात भारत की जनता में आज़ादी की भावना अपने चरम पर
पहुँच रही थी इसी कारण गांधी जी ने स्थिति को भांपते हुए करो या मरो का नारा दिया
जो ब्रिटिश हकूमत की दमनकारी नीतियों का एक जवाब था
किसने दिया: महात्मा
गाँधी
कब दिया: वर्ष 1942 में
लक्ष्य: “करो या मरो” नारे के द्वारा
गाँधी जी ने गुलामी की ज़िन्दगी जी रही भारत की आम जनता को एकजुट होकर लड़ने के लिए
प्रात्साहित किया इस नारे का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों का
सिरे से विरोध करना था इस नारे से देश की जनता को एकजुट होने तथा आज़ादी के लिए हर
संभव प्रयास करने की प्रेरणा मिली
जय हिन्द का नारा किसने दिया
जय हिन्द का नारा
सुभाष चन्द्र बोस द्वारा दिया गया हालाँकि इस नारे का प्रयोग सर्वप्रथम
क्रांतिकारी चेम्बाकरमण पिल्लई द्वारा किया गया था लेकिन सुभाष चन्द्र बोस द्वारा
आज़ाद हिन्द फ़ौज के लिए युद्धघोष के रूप प्रयुक्त इस नारे ने अधिक लोकप्रियता
प्राप्त की यह नारा भारत की आवाम में आत्याधिक प्रचलित था जिस का प्रमुख कारण “जय हिन्द” नारे में भारत देश
के प्रति एक प्रेम की भावना का एहसास होना भी था
किसने दिया: सुभाष
चन्द्र बोस
कब दिया: 1941
सर्वप्रथम किसने
दिया: चेम्बाकरमण पिल्लई
(नोट: वर्ष 1933 में पिल्लई को जब सुभाष चन्द्र बोस से मिलने का अवसर
प्राप्त हुआ उस समय उन्होंने “जय हिन्द” कह कर नेता जी का अभिवादन किया तथा यह शब्द नेता जी को
प्रभवित कर गए तथा ये ही शब्द बाद में आज़ाद हिन्द फ़ौज के युद्ध घोष के रूप में
जाने गए)
अर्थ: “जय हिन्द” का अर्थ है “भारत की विजय” आइए इस अर्थ को
विस्तार से समझने के प्रयास करें जय एक हिंदी शब्द है जिसका अर्थ होता है (जीत, विजय) इसी प्रकार हिन्द शब्द (भारत, हिन्दुस्तान, इंडिया) का एक अन्य
नाम है इसी प्रकार “जय हिन्द” का सामूहिक अर्थ “भारत की विजय” होता है
लक्ष्य: इस नारे का
लक्ष्य आज़ाद हिन्द फ़ौज के सैनिकों में देश के प्रति एक जूनून की भावना को भरना था
तथा जल्द ही यह नारा भारतीय जनता में लोकप्रिय हो गया
वन्दे मातरम् का नारा किसने दिया
वन्दे मातरम् एक
नारा मात्र ना होकर भारत का राष्ट्रगीत भी है इस गीत के रचयिता आदरणीय बंकिमचन्द्र
चट्टोपाध्याय जी है उनके द्वारा रचित उपन्यास “आनंद मठ” से लिए गए इस गीत में मूल
भाषा बांग्ला तथा संस्कृत का सामजस्य है वर्ष 1896 को कोलकाता कांग्रेस असेम्बली में इस गीत को सर्वप्रथम
रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा गाया गया था एक नारे के रूप में सामूहिक शब्द “वन्दे मातरम्” को आत्याधिक
लोकप्रियता मिली तथा आवाम में आज़ादी के लिए जोश भर कर इस नारे ने भारत माता की
आज़ादी में अहम् भूमिका निभाई इस गीत में भारत माता की वंदना की गई है
किसने दिया:
बंकिमचन्द्र चटर्जी
कब दिया: 1882
(रचना वर्ष)
राष्ट्रगीत का दर्जा
कब प्राप्त हुआ: 1950
अर्थ: “वन्दे मातरम्” दो शब्दों का
सामजस्य है प्रथम शब्द है वन्दे (वंदना करना) तथा मातरम् (माता) यहाँ माता से
तात्पर्य (भारत माता) मातृभूमि से है इस प्रकार इस नारे का सामूहिक अर्थ है “भारत माता की वंदना करता हूँ...” इस अर्थ को समझते हुए ध्यान देने योग्य बात ये है कि यह गीत
मूल रूप से बांग्ला भाषा में लिखा गया है तथा बांग्ला भाषा “व” अक्षर से रहित है इसी कारण
इस गीत का मूल नाम या उचारण “बन्दे मातरम्” होता है परन्तु संस्कृत भाषा में अर्थानुसार “वन्दे मातरम्” को उचित मानकर लिया
गया है
लक्ष्य: पूरे देश के
साथ साथ बंगाल में चल रहे स्वाधीनता आन्दोलन में यह नारा प्रयोग किया जाने लगा तथा
धीरे धीरे क्रांतिकारियों ने इसे दोहराना शुरू कर दिया समय के साथ साथ वन्दे
मातरम् नारा आत्याधिक लोकप्रिय होता गया यही कारण था कि एक समय ब्रिटिश सरकार को
इस पर प्रतिबन्ध लगाने के बारे में सोचना पड़ा था इस नारे का मूल लक्ष्य भारत माता
की स्वाधीनता के प्रति अपनी भावना को दर्शाना था
जय जवान जय किसान का नारा किसने दिया
जय जवान जय किसान
नारा वर्ष 1965 में लाल बहादुर शात्री
द्वारा उस समय दिया गया जब भारत तथा पडोसी देश पकिस्तान के मध्य युद्ध अपनी चरम
सीमा पर था उस समय जहाँ एक तरफ देश के जवानों तथा रक्षकों की ताकत बढ़ाने का लक्ष्य
सर्वोपरि था दूसरी तरफ देश की आर्थिक व्यवस्था को सुधारना भी प्रथम लक्ष्य को प्राप्त
करने हेतु अनिवार्य था इसी स्थिति को समझते हुए आदरणीय शास्त्री जी ने “जय जवान जय किसान” रुपी नारा दिया जिसने भारत के जवानों को देश की रक्षा तथा भारत के किसानों को
एकजुट होकर देश की आर्थिक व्यवस्था में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए
प्रोत्साहित किया
शास्त्री जी के
अनुसार अगर कोई राष्ट्र आर्थिक रूप से तथा रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होगा तो
कोई भी विश्व शक्ति उसका कुछ नही बिगाड़ सकेगी और शास्त्री जी की यही दूरदर्शिता
सटीक साबित हुई तथा भारत के जवानों ने पकिस्तान को हार का मुँह दिखाया तथा किसानो
ने देश की आर्थिक व्यवस्था को सुधारा
किसने दिया: लाल
बहादुर शास्त्री
कब दिया: 1965
अर्थ: “जय जवान जय किसान” नारा जवानों की शत्रुओं पर विजय तथा किसानों की भूख व आर्थिक व्यवस्था पर विजय
के लिए आह्वान करता है ये दोनों ही भारत जैसे किसी भी विकसित देश की रीढ़ की हड्डी
माने जाते हैं
लक्ष्य: जब भारत से
अलग बने पकिस्तान ने भारत के साथ युद्ध की ठान ली उस समय भारत देश बहुत ही बुरी
आर्थिक व्यवस्था से गुजर रहा था दूसरी तरफ पकिस्तान सरहदों पर वार कर रहा था उस
स्थिति से निपटने के लिए भारत की सरहद पर लड़ रहे जवान तथा खेत में अपना पसीना भा
रहे किसान दोनों को प्रोत्साहित करने हेतु शास्त्री ने उनके सम्मान में जय जवान जय
किसान का नारा दिया जो कि सच्चाई से आँख मिलाता प्रतीत हो रहा था इससे पूरे देश
में एक जोश की लहर दौड़ गई तथा सार्थक परिणाम देखने को मिले
अंग्रेजो भारत छोड़ो
का नारा किसने दिया
“भारत छोड़ो” एक नारा मात्र ना होकर एक आन्दोलन था जिसका शंखनाद अहिंसा
के प्रतीक महात्मा गाँधी जी ने फूँका था 9 अगस्त 1942 को “अंग्रेजो भारत छोड़ो” नामक नारा दे कर गांधी जी ने समूचे देश की जनता से ब्रिटिश सत्ता को उखाड़
फेंकने का आह्वान किया जिसके सीधे असर से ब्रिटिश सरकार की नींव हिलने लगी तथा
अंग्रेजों ने इस आन्दोलन के खिलाफ कडा रूख इख्तियार कर लिया
हालांकि ब्रिटिशों
द्वारा पूर्ण जोर लगा देने के पश्चात भी इस आन्दोलन को दबाने में एक वर्ष से भी
अधिक समय लग गया भारत छोड़ो नारा (महात्मा गाँधी द्वारा) तथा दिल्ली चलो नारा
(सुभाष चन्द्र बोस द्वारा) एक ही समय पर दिए गए थे कारण था इंग्लैंड की द्वितीय
विश्व युद्ध में उलझना जिस कारण भारत पर ब्रिटिश सत्ता की पकड़ में कुछ कमी आई थी
किसने दिया: महात्मा
गाँधी (मोहन दास करमचंद गांधी)
कब दिया: 1942
अर्थ: “भारत छोड़ो” नारे का सीधा
शाब्दिक अर्थ ब्रिटिश सरकार को भारत से बाहर कर स्वयं सत्ता पर काबिज होने का था
इस नारे को “अंग्रेजों भारत छोड़ो” नारे के रूप में अधिक सरलता से समझा जाता है
लक्ष्य: लगभग 200 साल से राज कर रही ब्रिटिश सरकार जो अपने पाँव पूरे भारत
में फैला चुकी थी, की गहरी पकड़ को ख़त्म करके
तथा देश की आम जनता को गुलामी की जंजीरों से आज़ाद करवाना ही इस नारे का एक मात्र
लक्ष्य था इसी कारण यह नारा आर पार के युद्ध जैसा प्रतीत हो रहा था फल स्वरुप 5 वर्ष की जदोज़हद के बाद वर्ष 1947 में देश ने आज़ादी में अपनी पहली सांस ली
मरो नही मारो का नारा किसने दिया
“मरो नही मारो” का नारा “करो या मरो” का ही एक रूप था गाँधीवादी सोच चलते महात्मा गाँधी जी ने
नारा दिया था करो या मरो यह नारा उसी रात दिया गया था जिस रात “भारत छोड़ो” आन्दोलन का आगाज़ हुआ
यह इसी नारे का असर था कि सम्पूर्ण देश में क्रान्ति की प्रचंड आग फ़ैल गई ब्रिटिश
शासन के खिलाफ अगर एक हिंसक नारा कहा जाए तो गलत नही होगा यह नारा आज़ाद भारत के
प्रधानमंत्री रह चुके “लाल बहादुर शास्त्री” द्वारा दिया गया था जो कि बहुत ही चतुराई पूर्ण रूप से “करो या मरो” का ही एक अन्य रूप
था तथा समझने में आत्याधिक सरल था सैंकड़ों वर्षो से दिल में रोष दबाए हुए बैठी
जनता में यह नारा आग की तरह फ़ैल गया था
किसने दिया: लाल
बहादुर शास्त्री
कब दिया: 1942
अर्थ: एक तरफ
गाँधीवादी सोचनुसार अहिंसा के रास्ते पर चलकर शांति पूर्वक प्रदर्शन से ब्रिटिश
सरकार से आज़ादी लिए जाने का रास्ता था परन्तु अंग्रेजों ने शायद इसे आवाम का डर
समझ लिया था इसी कारण साफ़ अर्थों में अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों तथा हिंसा के
खिलाफ एक जुट होकर लड़ना आवश्यक था तत्पश्चात स्थिति को भांपते हुए शास्त्री जी ने
चतुराई पूर्वक “मरो नही मारो” का नारा दिया जो एक क्रान्ति के जैसा साबित हुआ
लक्ष्य: सहन करने की
सोच का अंत कर, बुरे के साथ बुरा बर्ताव
करना ब्रिटिश सरकार से आज़ादी मांगे की बजाए आज़ादी छीनने की भावना पूरे देश की जनता
में भरने हेतु यह नारा दिया गया था हालाँकि इसके परिणाम हिंसक होने तय थे परन्तु
भारत की जनता को किसी भी कीमत पर आज़ादी चाहिए थी यह तय था यही कारण था कि जनता का
रोष अब सामने आ गया था
स्वराज मेरा
जन्मसिद्ध अधिकार है:
“स्वराज मेरा
जन्मसिद्ध अधिकार है, और इसे मैं लेकर रहूँगा” यह नारा बाल गंगाधर तिलक जो कि भारत की स्वतंत्रता के
अग्रणी सेनानियों में से एक थे, ने वर्ष 1890 में दिया उनके मतानुसार “स्वराज” भारतीयों अधिकार है और
ब्रिटिश सरकार को सत्ता भारतियों को सौंप कर देश से चले जाना चाहिए इसके लिए हक
लड़कर भी लेना पड़े तो लिया जाएगा “लोकमान्य तिलक” के नाम से विश्वप्रसिद्ध बाल गंगाधर तिलक द्वारा कहा गया यह
वचन अति लोकप्रिय हुआ था
किसने दिया: बाल
गंगाधर तिलक
कब दिया: 1890
अर्थ: स्वराज
(अर्थात स्वंय का राज या शासन) जन्मसिद्ध (अर्थात जन्म से मिलने वाला) इसका
सामूहिक अर्थ होता है “भारत पर सत्ता या शासन पर
भारत में पैदा होने वाले भारतियों का ही एकाधिकार है...”
लक्ष्य: ब्रिटिश
हकूमत को भारत से उखाड़ फेंककर भारतीयों पर भारतियों की सत्ता काबिज करना ही इस
नारे का एकमात्र उद्देश्य था
मारो फिरंगी को नारा किसने दिया
“मारो फिरंगी को” नारा भारत की स्वाधीनता के लिए सर्वप्रथम आवाज़ उठाने वाले
क्रांतिकारी “मंगल पांडे” की जुबां से 1857 की क्रांति के समय निकला था भारत की आज़ादी के लिए क्रांति का आगाज़ 31 मई 1857 को होना तय हुआ था
परन्तु यह दो माह पूर्व 29 मार्च 1957 को ही आरम्भ हो गई मंगल पांडे को आज़ादी का सर्वप्रथम
क्रान्तिकारी माना जाता है
किसने दिया: मंगल
पांडे
कब दिया: 1857
अर्थ: फिरंगी
(अर्थात अंग्रेज या ब्रिटिश जो उस समय देश को गुलाम बनाए हुए थे, को क्रांतिकारियों व भारतियों द्वारा फिरंगी नाम से पुकारा
जाता था)
लक्ष्य: गुलाम जनता
तथा सैनिकों के हृदय में क्रांति की जल रही आग को धधकाने के लिए व लड़कर आज़ादी लेने
की इच्छा को दर्शाने के लिए यह नारा मंगल पांडे द्वारा गुंजाया गया था
सारे जहाँ से अच्छा
हिन्दोस्ताँ हमारा नारा किसने दिया
“सारे जहाँ से अच्छा
हिन्दोस्ताँ हमारा" एक नारा ना होकर एक ग़ज़ल है जो भारत की आज़ादी के पूर्व से
वर्तमान तक लोकप्रिय है और सदा रहेगी यह ग़ज़ल हिन्दुस्तान की तारीफ़ में गाई गई है
यह लोकप्रिय ग़ज़ल वर्ष 1905 में “मोहम्मद इकबाल” की क़लम से निकली थी
किसने दिया: मोहम्मद
इकबाल
कब दिया: 1905
लक्ष्य: हिन्दुस्तान
की तारीफ़ में अल्फाज गाने तथा आवाम में एकता/ भाई चारे की भावना को बढाना ही इस
लोकप्रिय ग़ज़ल का उद्देश्य था जो कि पूर्ण भी हुआ
साइमन कमीशन वापस
जाओ नारा किसने दिया
वर्ष 1927 भारत के संविधान में किए जाने वाले सुधारों के अध्ययन के
लिए सात ब्रिटिश सांसदों (अध्यक्ष: सर जॉन साइमन) का एक समूह था जिसे भारतीयों के
हित में ना मानते हुए “साइमन कमीशन वापस जाओ” के नारे लगाए जाने लगे यह नारा लाला लाजपत राय ने दिया तथा
इसी विरोध में लाठी की चोट से घायल लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई थी
किसने दिया: लाला
लाजपत राय
कब दिया: 1927
लक्ष्य: साइमन कमीशन
का विरोध करना तथा इसके द्वारा भारत में लागू की जा रही दमनकारी नीतियों का अंत ही
इस नारे का एकमात्र लक्ष्य था
कर मत दो का नारा किसने दिया
सरदार वल्लभ भाई
पटेल ले जीवनकाल में खेडा संघर्ष नाम से जाने जाने वाला संघर्ष “कर मत दो” नारे से सबंधित है
उस समय गुजरात का खेडा खंड सूखे की चपेट में आ गया था फलस्वरूप किसानो ने ब्रिटिश
सरकार से आग्रह किया कि उस वर्ष कर (टैक्स) में छूट दी जाए परन्तु ब्रिटिश सरकार
ने यह आग्रह अस्वीकार कर दिया तत्पश्चात सरदार पटेल व महात्मा गाँधी सहित अन्य
लोगों ने किसानो का साथ दिया तथा पटेल ने “कर मत दो” का नारा दिया तथा अंतत:
ब्रिटिश सरकार को यह मांग माननी पड़ी
किसने दिया: सरदार
वल्लभ भाई पटेल
लक्ष्य: किसान, जो कि सूखे के कारण कर भुगतान करने में असमर्थ थे को कर ना
देने के लिए प्रेरित करना व ब्रिटिश सरकार को इस आग्रह को मानने पर विवश करना
पूर्ण स्वराज का नारा किसने दिया
स्वतंत्र भारत ले
प्रधानमंत्री बने “जवाहरलाल नेहरू” ने 1929 में हुए कांग्रेस
अधिवेशन में “पूर्ण स्वराज” का नारा देकर पूर्ण आज़ादी के लिए लड़ाई लड़ने का प्रस्ताव
पारित किया इसी संघर्ष के चलते भारत का आधिकारिक झण्डा लाहौर में फहराया गया
तत्पश्चात 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया
किसने दिया:
जवाहरलाल नेहरू
कब दिया: 1929
अर्थ: पूर्ण स्वराज
अर्थात भारत की सत्ता में भारतीयों का शत प्रतिशत योगदान तथा ब्रिटिश सरकार का
शून्य हस्तक्षेप (भारतीयों द्वारा भारतियों पर भारतियों का शासन)
अन्य नारे तथा वचन
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नारा/ वचन
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किसने दिया
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सबंधित जानकारी
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हु लीव्स इफ
इंडिया डाइज़
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जवाहरलाल नेहरू
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मेरे सिर पर लाठी
का एक एक प्रहार, अंग्रेजी शासन के ताबूत
की कील साबित होगा
|
लाला लाजपत राय
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साइमन कमीशन के
विरोध में जनता का नेतृत्व करने वाले लाला लाजपत राय पर अंग्रेजी शासन द्वारा
लाठियां बरसाई जा रही थी तथा ये ही चोटें अंतत: उनकी मृत्यु का कारण बनी मरने से
पूर्व लाला लाजपत राय जी ने ये नारा रुपी शब्द कहे थे जो उनके मरणोपरांत सच
साबित हुए
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साम्राज्यवाद का
नाश हो
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शहीद भगत सिंह
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साम्राज्यवाद
मुर्दाबाद अर्थात साम्राज्यवाद का नाश हो नारा शहीद भगत सिंह ने सेंट्रल असेंबली
में बम फेंकने के बाद लगाया था
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हे राम
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महात्मा गाँधी
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यह शब्द अहिंसा के
रास्ते पर चल कर आज़ादी प्राप्त करने की सोच रखने वाले महात्मा गाँधी के अंतिम
वचन थे 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा चलाई गई गोलियों से मृत्यु को
प्राप्त हुए गाँधी जी, के मुख से निकले ये अंतिम
शब्द थे
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आराम हराम है
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जवाहरलाल नेहरू
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स्वतंत्र भारत के
प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में लगातार तीन बार बहुमत प्राप्त करने वाले “जवाहरलाल नेहरू” ने भारत के युवाओं को कर्मठ बनाने तथा उनमें परिश्रम की भावना भरने के
उद्देश्य से “आराम हराम है...” का नारा दिया था
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हिंदी हिन्दू
हिन्दुस्तान
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भारतेंदू
हरीशचन्द्र
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जय जगत
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बिनोवा भावे
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जय जगत का नारा
बिनोवा भावे ने दिया था जिसका लक्ष्य भिन्न भिन्न संस्कृति या क्षेत्रो से होते
हुए भी एक मानवता के बंधन द्वारा सम्पूर्ण जगत को एक बनाना था तथा एकता की भावना
का प्रसार करना था
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सम्पूर्ण क्रांति
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जयप्रकाश नारायण
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स्वतंत्र भारत की
प्रथम महिला प्रधानमंत्री के रूप में जानी जाने वाली इंदिरा गाँधी के खिलाफ “सम्पूर्ण क्रांति” (वर्ष 1975 में) नामक
आन्दोलन चलाया गया जिसके अग्रणी जननायक जय प्रकाश नारायण थे इस क्रांति का
लक्ष्य इंदिरा सरकार को उखाड़ फेंकना था सात क्षेत्रों की क्रांति के सामजस्य से
बनी इस क्रांति को जयप्रकाश नारायण ने ही सम्पूर्ण क्रांति नाम दिया था इस
क्रांति से माध्यम से नारायण ने समाज के दबे कुचले लोगों के जीवन को सुधारने का
प्रयास किया था तथा समाज की कुरीतियों को नष्ट करने में अहम् भूमिका निभाई
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