लिपस्टिक या होठों को रंगने का काम सभ्यता के पहले से हो
रहा है। प्राचीन मेसोपोटामिया में स्त्रियाँ कीमती रत्नों को पीसकर उनका लेप होठों
पर लगाती थीं। सिंधु घाटी की सभ्यता और प्राचीन मिस्र की सभ्यता में भी होठों को
सजाने की वस्तुएं मिलीं हैं।
इस्लाम के स्वर्णयुग में अरबी हकीम और जर्राह अबू अल कासिम
अल बहराबी ने खुशबूदार बत्तियाँ बनाईं जिनसे होंठ सजाए जाते। यूरोप में ईसाई चर्च
होठों को सजाने के विरोधी थे। पर इंग्लैंड में 16 वीं सदी में एलिजाबेथ प्रथम अपने होंठ लाल रंग से रंगतीं
थीं। धीरे-धीरे यूरोप ने भी इसे स्वीकार कर लिया।
लिपस्टिक में कई तरह के मोम, तेल, रंग और त्वचा को
मुलायम बनाने वाले पदार्थ होते हैं। इन्हें बारीक पीसा जाता है, उसमें कई तरह के मोम और तेल, जिसमें पैट्रोलेटम भी शामिल है मिलाए जाते हैं
और फिर उस घोल को गर्म किया जाता है। उसके बाद इसे धातु के खांचों में ढालकर ठंडा
किया जाता है। जब लिप्स्टिक जम जाती है तो उसे आधा सेकेंड के लिए आग की लपट दिखाई
जाती है जिससे वह चिकनी हो जाए।
लिप्स्टिक शरीर के तापमान से पिधल न जाए इसके लिए सैट्ल
ऐलकोहल मिलाया जाता है। लेकिन इसमें प्रयोग होने वाले रसायनों से कोई नुक़सान नहीं
होता क्योंकि ये बहुत कम मात्रा में होते हैं।
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