अगस्त 1942 में गांधी जी ने
''भारत छोड़ो
आंदोलन'' की शुरूआत की तथा
भारत छोड़ कर जाने के लिए अंग्रेजों को मजबूर करने के लिए एक सामूहिक नागरिक
अवज्ञा आंदोलन ''करो या मरो'' आरंभ करने का
निर्णय लिया। इस आंदोलन के बाद रेलवे स्टेशनों, दूरभाष कार्यालयों, सरकारी भवनों और
अन्य स्थानों तथा उप निवेश राज के संस्थानों पर बड़े स्तर पर हिंसा शुरू हो
गई। इसमें तोड़ फोड़ की ढेर सारी घटनाएं हुईं और सरकार ने हिंसा की इन गतिविधियों
के लिए गांधी जी को उत्तरदायी ठहराया और कहा कि यह कांग्रेस की नीति का एक जानबूझ
कर किया गया कृत्य है। जबकि सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, कांग्रेस पर
प्रतिबंद लगा दिया गया और आंदोलन को दबाने के लिए सेना को बुला लिया गया।
इस बीच नेता जी
सुभाष चंद्र बोस, जो अब भी भूमिगत
थे, कलकत्ता में
ब्रिटिश नजरबंदी से निकल कर विदेश पहुंच गए और ब्रिटिश राज को भारत से उखाड़
फेंकने के लिए उन्होंने वहां इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए) या आजाद हिंद फौज का गठन
किया।
द्वितीय विश्व
युद्ध सितम्बर 1939 में शुरू हुआ और
भारतीय नेताओं से परामर्श किए बिना भारत की ओर से ब्रिटिश राज के गर्वनर जनरल ने
युद्ध की घोषणा कर दी। सुभाष चंद्र बोस ने जापान की सहायता से ब्रिटिश सेनाओं के
साथ संघर्ष किया और अंडमान और निकोबार द्वीप समूहों को ब्रिटिश राज के कब्जे से
मुक्त करा लिया तथा वे भारत की पूर्वोत्तर सीमा पर भी प्रवेश कर गए।
किन्तु 1945 में जापान ने
पराजय पाने के बाद नेता जी एक सुरक्षित स्थान पर आने के लिए हवाई जहाज से चले
परन्तु एक दुर्घटनावश उनके हवाई जहाज के साथ एक हादसा हुआ और उनकी मृत्यु हो गई ''तुम मुझे खून दो
और मैं तुम्हें आजादी दूंगा'' उनके द्वारा दिया गया सर्वाधिक लोकप्रिय नारा था, जिसमें उन्होंने
भारत के लोगों को आजादी के इस संघर्ष में भाग लेने का आमंत्रण दिया।
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