दूरबीन या दूरदर्शी (Telescope) एक ऐसा यंत्र है जो दूर की वस्तुओं को साफ-साफ देखने के लिए काम में लाया जाता है। टेलिस्कोप शब्द की उत्पति ग्रीक भाषा के टेलेस्कोपीन शब्द से हुई है। टेली का अर्थ है दूर और स्कोपीन का अर्थ देखना । अत: टेलेस्कोपीन का अर्थ है दूर की वस्तुओं का देखने का यंत्र।
Telescope inventor in Hindi

दूरदर्शी यंत्र प्रकार

दूरदर्शी यंत्र दो प्रकार के होते है । एक प्रकाशीय दूरदर्शी यंत्र और दुसरे रेडियो दूरदर्शी यंत्र । प्रकाशीय दूरदर्शी यंत्र भी दो प्रकार के होते है । एक प्रकार के यंत्र को अपवर्तक दूरदर्शी यंत्र (Refracting Telescope) कहते है । और दुसरे प्रकार के यंत्र को परावर्तक दूरदर्शी यंत्र (Reflecting Telescope) कहते है। अपवर्तक दूरदर्शी यंत्र में एक नाली लगी होती है जिसके दोनों सिरों पर दो लैंस होते है ।

इन लैंसो को आगे पीछे खिसकाया जा सकता है । जो लैंस वास्तु की और रहता है उसे अभिद्र्श्यक लैंस (Objective lens) कहते है। और जो आंख की और रहता है उसे नेत्रिका लैंस (Eye Piece) कहते है। वस्तु से आने वाली प्रकाश की किरणें अभिद्र्श्यक लैंस से होती हुई उसका प्रतिबिम्ब बनाती है जो नेत्रिका लैंस द्वारा देख लिया जाता है। परावर्तक दूरदर्शी यंत्रों में एक नतोदर्पण (Concave Mirror) होता है जो वस्तु से आने वाले प्रकाश को एकत्र करके उसका प्रतिबिम्ब बनाता है।

रेडियो दूरदर्शी में आकाशीय पिण्डों से आने वाली रेडियो तरंगो को बड़े-बड़े धातु के दर्पणों द्वारा प्राप्त करके इलेक्ट्रॉनिक यंत्रो की सहायता से उनका अध्ययन किया जाता है। किसी दूरदर्शी यंत्र का आकार उसके अभिदृश्यक लेंस के व्यास से मापते है। लैंस का जितना अधिक व्यास होता है उतनी ही अधिक दुरी तक उससे वस्तुओ को देखा जा सकता है।

यधपि संसार से सबसे पहली दूरबीन हॉलैंड (Holland) के हान्स लिपरशे नमक व्यक्ति ने सन 1608 में बनायीं थी लेकिन उन्हें इस दूरबीन के निर्माण का एकाधिकार न मिल सका। इटली के विज्ञानिक गैलिलियो को जब इस आविष्कार  का पता लगा तो उन्होंने एक नए ढंग की दूरबीन बन डाली और इस प्रकार सन 1609 में दूरबीन के आविष्कार का श्रेय उन्होंने प्राप्त किया। आज संसार में गैलिलियो को ही दूरबीन का आविष्कारक कहते है।

गैलिलियो की दूरबीन यधपि दखने में सुंदर न थी लेकिन इसके द्वारा वस्तुए वास्तविक आकार से 33 गुना बड़ी दिखती थी। गैलिलियो ने अपनी दूरबीन से चन्द्रमा की सतह, वृहस्पति ग्रह के उपग्रह, शनि के छल्ले, आकाश गंगा आदि बहुत सी आकाशीय चीजों का अध्ययन किया। इस आविष्कार के बाद भांति-भांति के दूरदर्शी यंत्रों का विकाश हुआ।

सन 1928 में अमेरीका के माउंट पलोमेर (Mount Palomar) पर 200 इंच के व्यास के परावर्तक वाला दूरदर्शी यंत्रों लगाया गया। इसी प्रकार रूस में 234 इंच व्यास के परावर्तक वाले दूरदर्शी का निर्माण किया जा चुका है। ये दूरदर्शी संसार के सबसे शक्तिशाली दूरदर्शी था एक 48 इंच व्यास का दूरदर्शी यंत्रों भारत की उश्मानिया युनिवेर्सिटी में भी लगा हुआ था । आज तो भारत के पास एक से बढ़कर एक दूरदर्शी यंत्र हैं। जिश्की सहायता से ग्रह नक्षत्रों के विषय में बहुत सी खोजें की गई है।

20 वी सदी में बहुत से रेडियो दूरदर्शी यंत्रो का भी विकाश हुआ है इन दूरदर्शी यंत्रो में तश्तरी के आकार का धातु का एक बहुत बड़ा परावर्तक (Reflector) होता है जिसे एन्टीना कहते है। यह खगोलीय पिण्डों से आने वाली रेडियो तरंगों को प्राप्त करती है। ये रेडियो तरंगे रिसीवर (Receiver) में जाती हैं, फिर इनकी शक्ति बढ़ाकर इनकी परीक्षा की जाती है , रिसीवर उन तारों और ग्रहों के विषय में जानकारी देता है जिससे ये तरंगे आती हैं। ये दूरदर्शी यंत्र सभी मौसमों , कुहरे और धुन्ध में सफलता पूर्वक काम करते रहते हैं। संसार का सबसे बड़ा रेडियो दूरदर्शी Green Light, (TMT) Thirty Meter Telescope । जो Mauna Kea, Hawaii (Island) में लगाया हुआ हैं।

वृहत मीटर वेव रेडियो टेलिस्कोप भारत के पुणे शहर से 80 किलोमीटर उत्तर में खोडाड नामक स्थान पर स्थित रेडियो दूरबीनों की विश्व की सबसे विशाल सारणी है। इसकी स्थिति 19° 5’47.46" उत्तरी अक्षांश रेखा तथा 74° 2’59.07" पूर्वी देशान्तर रेखा पर है। यह टेलिस्कोप दुनिया की सबसे संवेदनशील दूरबीनों में से एक है। इसका संचालन पुणे विश्वविधालय परिसर में स्थित राष्ट्रीय खगोल भौतिकी केन्द्र  (एनसीआरए) करता है जो टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (टी आइ एफ़ आर) का एक हिस्सा है।इस दूरबीन के केन्द्र में वर्ग रूप से 14 डिश हैं तथा तीन भुजाओं का निर्माण 16 डिश से हुआ है, जनमें से प्रत्येक का व्यास 45 मीटर है। इस प्रकार 25 किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह जायंट मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप 30 दूरबीनों का समूह है। इसका कोई सलग पृष्ठभाग नहीं है क्योंकि यह दूरबीन पॅराबोलिक आकार में तारों का एक जाल है। पृष्ठभाग न रखकर इसका वजन कम किया गया है और कम पावर की मोटरों को लगाकर उनकी जगह बदलने की व्यवस्था भी की गई है। सभी डिशों को अत्यन्त सूक्ष्मता पूर्वक सभी दिशाओं में घुमाया जा सकता है। इस रचना का पेटंट है और खगोलशास्त्रज्ञ डॉ. गोविंद स्वरूप इसके जनक हैं। वृहत मीटरवेव रेडियो टेलिस्कोप की विशेष और स्वाभिमानवाली बात यह है कि इसका डिश एंटीना ही नहीं बल्कि संपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक्स भी भारत में भारतीय वैज्ञानिकों ने तैयार किया है।

अंतरिक्ष वैज्ञानिक और इंजीनियर पिछले अनेक वर्षों से एक ऐसे विशाल टेलिस्कोप के निर्माण में जुटे हुए हैं, जो अब तक अंतरिक्ष में भेजे गए सभी टेलिस्कोप की तुलना में सबसे बड़ा और शक्तिशाली होगा। यह टेलिस्कोप है- जेम्स वैब स्पेस टेलिस्कोप। इसके निर्माण का काम 1996 से चल रहा है, लेकिन काम है कि पूरा होने का नाम ही नहीं ले रहा है। फल यह हुआ कि अमेरिकी सदन में इस महायोजना को रद्द कर देने की मांग उठ चुकी है। इस पर वित्तीय संकट के बादल मंडरा रहे हैं, लेकिन वैज्ञानिकों के जोश और दुनिया भर के इसके चहेतों ने इसके निर्माण को रुकने नहीं दिया है। इसे बचाने के लिए इंटरनेट पर सेव द जेम्स वैब स्पेस टेलिस्कोपब्लॉग के अलावा फेसबुक और टिवट्र पर भी अभियान जारी हैं।

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