राडार (Radar) शब्द अंग्रेजी के पांच अक्षरों से मिलकर बना है ये अक्षर हैं आर, ए, डी, ए और आर ये अक्षर रेडियो
डिटेक्टिंग एण्ड रेंजिंग (Radio Detecting and Ranging) के लिए प्रयोग होते हैं जिसका अर्थ है, रेडियो तरंगों द्वारा किसी वस्तु की स्थिति और
दुरी ज्ञात करना वास्तव में राडार एक ऐसा यंत्र है, जिसकी सहायता से उन वस्तुओं की स्थिति और दुरी का पता लगाया
जा सकता है, जो हमें खाली
आंखों से दिखाई नहीं देतीं यह एक ऐसा यंत्र है, जो कोहरा, धुंध, धुआं, हिमपात, आंधी, तूफान, वर्षा आदि सभी स्थितियों में अपना काम करता रहता है इसकी सहायता से उड़ते हुए
हवाई जहाजों की स्थिति, दुरी तथा वेग का
पता बड़ी आसानी से लग जाता है इस कारण इसे वायुयानों के नियंत्रण और मार्ग-दर्शन के लिए
प्रयोग में लाया जाता है राडार से यह भी पता चल जाता है कि अमुक विमान अपना है कि
दुश्मन का |
राडार प्रतिध्वनी (Echo) के सिद्धांत पर कार्य करता है जैसे ध्वनि तरंगें किसी वस्तु
से टकरा कर लौटती हैं, तो प्रतिध्वनि
पैदा करती हैं, उसी प्रकार
रेडियों तरंगें जो विधुत चुम्बकीय तरंगें हैं, किसी वस्तु से टकराती हैं तो परावर्तित हो जाती हैं,
रेडियो तरंगों के वायुयानों और जलयानों से
टकराकर परावर्तित होने के गुण का पता वैज्ञानिकों को 1930 में चला इसी गुण को प्रयोग में लाकर 1935 में इंगलैंड में पांच राडार केन्द्र पहली बार
स्थापित किए गए थे इसके बाद अमेरिका में भी राडार यंत्रों का विकास हुआ |
मुख्य रूप से राडार का विकास दुश्रे महायुद्ध के दौरान हुआ
राडार से बमवर्षक विमानों का पता लगाने और गिराने में बड़ी मदद मिली युद्ध के बाद
तो शांतिकाल के उपयोग के लिए अनेकों प्रकार के राडारों का विकास हो गया अब तो
ऐसे-ऐसे राडार बन गए हैं, जिनकी सहायता से
मानव रहित यानों का नियंत्रण और मार्ग-दर्शन किया जाता है मौसम सम्बन्धी सूचना
देने वाले राडार भी आज उपलब्ध हैं इसकी सहायता से वर्षा, हिमपात, आंधी और आने वाले
तूफानों का पता बड़ी आसानी से लग जाता है
राडार कैसे काम करता है?
राडार में रेडियो तरंगों को प्रयोग में लाया जाता है ये वही
तरंगें हैं, जो रेडियो
प्रसारण में प्रयोग होती हैं, फर्क केवल इतना
है कि इनकी आवृन्ति अधिक होती है, यानि तरंगें काम
होती हैं इन्हें सूक्ष्म तरंग (Micro Wave) कहते हैं ये प्रकाश वेग से चलती हैं, यानी इनका वेग 1,86,000 मील प्रति सेकिंड होता है किसी भी राडार केन्द्र पर एक ट्रांसमीटर होता है, जो सभी दिशाओं में रेडियों तरंगें भेजता है
इसके साथ ही एक रिसीवर (Receiver) होता है, जो वस्तु से परावर्तित रेडियो तरंगों को
प्राप्त करता है इस रिसीवर में वस्तु की स्थिति प्रदर्शित करने वाला एक पर्दा होता
है, जो वसतो से परावर्तित
रेडियो तरंगों को ठीक दिशा में भेजता है
ट्रांसमीटर से जाने वाली तरंगें वस्तु से टकराकर जब लौटती
हैं, तो उन्हें रिसीवर से
प्राप्त करके उनके द्वारा जाने और आने में लिए गए समय का पता लगा लिया जाता है इस
समय को प्रकाश के वेग से गुणा करने पर वस्तु की दोगुनी दुरी का पता लग जाता है इस
दुरी की आधी दुरी ही वस्तु की दुरी होती है इस यंत्र में इन सब कार्यों को करने के
लिए स्वयमचालित उपकरण होते है
पहले राडार यंत्र आकार में बहुत बड़े होते थे, लेकिन अब तो इतने छोटे राडार भी बना लिए गए हैं,
जिनका आकार हमारी हथेली से भी छोटा होता है इस
प्रकार हम देखते हैं कि राडार हमारे लिए युद्ध काल में ही नहीं बल्कि शांतिकाल में
भी बहुत उपयोगी सिद्ध हो रहा है |
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