हिन्दी को खड़ी बोली नहीं कहा जाता, बल्कि कहा यह जाता है कि आज की जो मानक हिन्दी है वह खड़ी बोली से निकली है| खड़ी बोली पश्चिम रूहेलखंड, गंगा के उत्तरी दोआब तथा अंबाला जिले की उपभाषा है जो ग्रामीण जनता के द्वारा मातृभाषा के रूप में बोली जाती है| इसे कौरवी भी कहते हैं|

इस प्रदेश में रामपुर, बिजनौर, मेरठ, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, सहारनपुर, देहरादून का मैदानी भाग, अंबाला तथा कलसिया और भूतपूर्व पटियाला रियासत के पूर्वी भाग आते हैं|

मुसलमानी प्रभाव के निकटतम होने के कारण इस बोली में अरबी फारसी के शब्दों का व्यवहार हिंदी प्रदेश की अन्य उपभाषाओं की अपेक्षा अधिक है| इससे ही उर्दू निकली|

हिन्दी में ब्रज, अवधी, भोजपुरी, राजस्थानी, मागधी वगैरह बोलियाँ हैं| खड़ी बोली अनेक नामों से पुकारी गई है, जैसे हिंदुई, हिंदवी, दक्खिनी, दखनी या दकनी, रेख्ता, हिंदोस्तानी, हिंदुस्तानी आदि|

डा. ग्रियर्सन ने इसे वर्नाक्युलर हिंदुस्तानी तथा डा. सुनीति कुमार चटर्जी ने इसे जनपदीय हिंदुस्तानी का नाम दिया है| डा. चटर्जी खड़ी बोली के साहित्यिक रूप को साधु हिंदी या नागरी हिंदी कहते थे और डा. ग्रियर्सन ने इसे हाई हिंदी का नाम दिया| अनेक विद्वान खड़ी का अर्थ सुस्थित, प्रचलित, सुसंस्कृत, परिष्कृत या परिपक्व मानते हैं खड़ी बोली को खरी बोली भी कहा गया है|

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