गोमुखासन एक योग आसन है, जो दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसमे गौ का मतलब 'गाय' और मुख का मतलब 'मुँह' और आसन यानि मुद्रा. यह हमारे हाथों, बाजुओं और कूल्हों को मजबूती देता है अनियमित खान-पान या कुछ अन्य कारणों से कई बार स्त्री व पुरुषो का शरीर पूरी तरह विकसित नहीं हो पाता है। 

Gomukhasana

ऐसे में कई बार शरीर का सही आकृति  में न होना भी स्त्री व पुरुषो के आत्मविश्वास में कमी का कारण बन जाता है। सुडोल शरीर के लिए योगासन सबसे अच्छा तरीका है। ऐसा ही एक आसन है गोमुखासन जो स्त्री व पुरुषो आकर्षक और सौन्दर्य प्रदान करता है।

यह स्वास्थ्य के लिए भी की लाभकारी हैं। इस आसन में व्यक्ति की आकृति गाय के मुख के समान बन जाती है इसीलिए इसे गोमुखासन कहते हैं। स्वाध्याय एवं भजन, स्मरण आदि में इस आसन का प्रयोग किया जा सकता है।

गोमुखासन करने की विधि:

1. किसी शुद्ध वातावरण वाले स्थान पर कंबल आदि बिछाकर बैठकर जाएं। अब अपने बाएं पैर को घुटनों से मोड़कर दाएं पैर के नीचे से निकालते हुए एड़ी को पीछे की तरफ नितम्ब के पास सटाकर रखें।

2. अब दाएं पैर को भी बाएं पैर के ऊपर रखकर एड़ी को पीछे नितम्ब के पास सटाकर रखें। इसके बाद बाएं हाथों को कोहनी से मोड़कर कमर के बगल से पीठ के पीछे लें जाएं तथा दाहिने हाथ को कोहनी से मोड़कर कंधे के ऊपर सिर के पास पीछे की ओर ले जाएं।

3. दोनों हाथों की उंगलियों को हुक की तरह आपस में फंसा लें। सिर व रीढ़ को बिल्कुल सीधा रखें और सीने को भी तानकर रखें। इस स्थिति में कम से कम 2 मिनिट रुकें।

4. फिर हाथ व पैर की स्थिति बदलकर दूसरी तरफ भी इस आसन को इसी तरह करें। इसके बाद 2 मिनट तक आराम करें और पुन: आसन को करें।

5. यह आसन दोनों तरफ से 4-4 बार करना चाहिए। सांस सामान्य रखेंगे।

6. हाथों के पंजों को पीछे पकड़े रहने की सुविधानुसार 30 सेकंड से एक मिनट तक इसी स्थिति में रहें। इस आसन के चक्र को दो या तीन बार अपनी सेहत या सुविधानुसार दोहरा सकते हैं

गोमुखासन करने की लाभ:

1. यह आसन दमे के रोगियों के लिए रामबाण है। इस आसन से धातु की दुर्बलता, मधुमेह, लो ब्लेङप्रेशर और हार्नियाँ में भी लाभ होता है।

2. यह स्त्रियों के अनियमित मासिक धर्म एंव ल्यूकोरिया की समस्या को दूर करने वाला आसन भी है।

3. इससे हाथ-पैर की मांसपेशियां चुस्त और मजबूत बनती है। तनाव दूर होता है। कंधे और गर्दन की अकड़न को दूरकर कमर, पीठ दर्द आदि में भी लाभदायक।

4. छाती को चौड़ा कर फेफड़ों की शक्ति को बढ़ाता है जिससे श्वास संबंधी रोग में लाभ मिलता है।

5. यह आसन सन्धिवात, गठीया, कब्ज, अंडकोषवृद्धि, हर्निया, यकृत, गुर्दे, धातु रोग, बहुमूत्र, मधुमेह एवं स्त्री रोगों में बहुत ही लाभदायक सिद्ध होता है।

गोमुखासन की सावधा‍नी:

हाथ, पैर और रीढ़ की हड्डी में कोई गंभीर रोग हो तो यह आसन न करें।

जबरदस्ती पीठ के पीछे हाथों के पंजों को पकड़ने का प्रयास न करें। 

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