मत्स्येन्द्रासन (मत्स्य+इंद्र+आसन) शब्दों से मिलकर बना है, यह एक संस्कृत भाषा है। जहां  कामत्स्यका अर्थ मछली(fish), ‘इंद्रका अर्थ भगवान इंद्र(Lord) और आसनका अर्थ मुद्रा(pose) से है।

Matsyendrasana Yoga

मत्स्येन्द्रासन(Matsyendrasana yoga) की रचना गोरखनाथ के गुरु स्वामी मत्स्येन्द्रनाथ ने की थी। वे इस आसन में ध्यानस्थ रहा करते थे। मत्स्येन्द्रासन की आधी क्रिया को लेकर ही अर्ध-मत्स्येन्द्रासन प्रचलित हुआ। रीढ़ की हड्डियों के साथ उनमें से निकलने वाली नाड़ियों को यह आसन पुष्ट करता है।

अर्धमत्स्येन्द्रासन कैसे करें विधि | Matsyendrasana yoga

1. बैठकर दोनों पैर लंबे किए जाते हैं। तत्पश्चात बाएँ पैर को घुटने से मोड़कर एड़ी गुदाद्वार के नीचे जमाएँ।

2. अब दाहिने पैर को घुटने से मोड़कर खड़ा कर दें और बाएँ पैर की जंघा से ऊपर ले जाते हुए जंघा के पीछे जमीन पर रख दें।

3. अब बाएँ हाथ को दाहिने पैर के घुटने से पार करके अर्थात घुटने को बगल में दबाते हुए बाएँ हाथ से दाहिने पैर का अँगूठा पकड़ें।

4. अब दाहिना हाथ पीठ के पीछे से घुमाकर बाएँ पैर की जाँघ का निम्न भाग पकड़ें।

5. सिर दाहिनी ओर इतना घुमाएँ क‍ठोड़ी और बायाँ कंधा एक सीधी रेखा में आ जाए। नीचे की ओर झुकें नहीं। छाती, गर्दन बिल्कुल सिधी व तनी हुई रखें।

6. यह एक तरफ का आसन हुआ। इस प्रकार पहले दाहिने पैर मोड़कर, एड़ी गुदाद्वार के नीचे दबाकर दूसरी तरफ का आसन भी करें। प्रारंभ में पाँच सेकंड यह आसन करना पर्याप्त है।

7. फिर अभ्यास बढ़ाकर एक मिनट तक आसन कर सकते हैं। चित्तवृत्ति नाभि के पीछें के भाग में स्थित मणिपुर चक्र में स्थिर करें तथा श्वास दीर्घ।


अर्धमत्स्येन्द्रासन के लाभः

1. अर्धमत्स्येन्द्रासन से मेरूदण्ड स्वस्थ रहने से यौवन की स्फूर्ति बनी रहती है।

2. रीढ़ की हड्डियों के साथ उनमें से निकलने वाली नाडियों को भी अच्छी कसरत मिल जाती है।

3. पेट के विभिन्न अंगों को भी अच्छा लाभ होता है। पीठ, पेट के नले, पैर, गर्दन, हाथ, कमर, नाभि से नीचे के भाग एवं छाती की नाड़ियों को अच्छा खिंचाव मिलने से उन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। फलतः बन्धकोष दूर होता है।

4. जठराग्नि तीव्र होती है। विकृत यकृत, प्लीहा तथा निष्क्रिय वृक्क के लिए यह आसन लाभदायी है। कमर, पीठ और सन्धिस्थानों के दर्द जल्दी दूर हो जाते हैं।

5. यह मधुमेह के लिए अति लाभकारी है यह इन्सुलिन के स्राव में मत्वपूर्ण भूमिका  है।

6. कमर, पीठ और संधिस्थानों के दर्द जल्दी दूर हो जाते हैं आदी।

सावधा‍‍नी :

रीढ़ की हड्डी में कोई शिकायत हो साथ ही पेट में कोई गंभीर बीमारी हो ऐसी स्थिति में यह आसन न करें। 

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