प्रदूषण की एक परिभाषा यह भी हो सकती है कि ''पर्यावरण प्रदूषण उस स्थिति को कहते हैं जब
मानव द्वारा पर्यावरण में अवांछित तत्वों एवं ऊर्जा का उस सीमा तक संग्रहण हो जो
कि पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा आत्मसात न किये जा सकें।'' वायु में हानिकारक पदार्थों को छोड़ने से वायु प्रदूषित हो
जाती है। यह स्वास्थ्य समस्या पैदा करती है तथा पर्यावरण एवं सम्पत्ति को नुकसान
पहुँचाती है। इससे ओजोन पर्त में बदलाव आया है जिससे मौसम में परिवर्तन हो गया है।
आधुनिकता तथा विकास ने, बीते वर्षों में वायु को प्रदूषित कर दिया है। उद्योग,
वाहन, प्रदूषण में वृद्धि, शहरीकरण कुछ
प्रमुख घटक हैं। जिनसे वायु प्रदूषण बढ़ता है। ताप विद्युत गृह, सीमेंट, लोहे के उद्योग, तेल शोधक उद्योग, खान, पैट्रोरासायनिक उद्योग, वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं।
वायु प्रदूषण के कुछ ऐसे प्रकृति जन्य कारण भी हैं जो मनुष्य
के वष में नहीं है। मरूस्थलों में उठने वाले रेतीले तूफान, जंगलों में लग जाने वाली आग एवं घास के जलने से उत्पन्न
धुऑं कुछ ऐसे रसायनों को जन्म देता है, जिससे वायु प्रदूषित हो जाती है, प्रदूषण का स्रोत कोई भी देष हो सकता है पर उसका प्रभाव, सब जगह पड़ता है। अंटार्कटिका में पाये गये
कीटाणुनाशक रसायन, जहाँ कि वो कभी
भी प्रयोग में नहीं लाया गया, इसकी गम्भीरता को
दर्शाता है कि वायु से होकर, प्रदूषण एक स्थान
से दूसरे स्थान तक पहुँच सकता है।
प्रमुख वायु प्रदूषण तथा उनके स्रोत
कार्बन मोनो आक्साइड (CO) यह गंधहीन, रंगहीन गैस है।
जो कि पेट्रोल, डीजल तथा कार्बन
युक्त ईंधन के पूरी तरह न जलने से उत्पन्न होती है। यह हमारे प्रतिक्रिया तंत्र को
प्रभावित करती है और हमें नींद में ले जाकर भ्रमित करती है।
कार्बन डाई आक्साइड (CO2) यह प्रमुख ग्रीन हाउस गैस है जो मानव द्वारा कोयला, तेल तथा अन्य प्राकृतिक गैसों के जलाने से
उत्पन्न होती है।
क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (CFC) यह वे गैसें हैं जो कि प्रमुखत: फ्रिज तथा एयरकंडीशनिंग
यंत्रों से निकलती हैं। यह ऊपर वातावरण में पहुँचकर अन्य गैसों के साथ मिल कर 'ओजोन पर्त' को प्रभावित करती है जो कि सूर्य की हानिकारक अल्ट्रावायलेट
किरणों को रोकने का कार्य करती हैं।
लैड यह पेट्रोल, डीजल, लैड बैटरियां, बाल रंगने के उत्पादों आदि में पाया जाता है और
प्रमुख रूप से बच्चों को प्रभावित करता है। यह रासायनिक तंत्र को प्रभावित करता
है। कैंसर को जन्म दे सकता है तथा अन्य पाचन सम्बन्धित बीमारियाँ पैदा करता है।
ओजोन यह वायुमंडल की ऊपरी सतह पर पायी जाती है। यह
महत्वपूर्ण गैस, हानिकारक
अल्ट्रावायलेट किरणों से पृथ्वी की रक्षा करती हैं। लेकिन पृथ्वी पर यह एक अत्यन्त
हानिकारक प्रदूषक है। वाहन तथा उद्योग, इसके सतह पर उत्पन्न होने के प्रमुख कारण है। उससे ऑंखों में खुजली जलन पैदा
होती है, पानी आता है। यह हमारी
सर्दी और न्यूमोनिया के प्रति प्रतिरोधक शक्ति को कम करती हैं।
नाइट्रोजन आक्साइड (Nox) यह धुऑं पैदा करती है। अम्लीय वर्षा को जन्म देती है। यह
पेट्रोल, डीजल, कोयले को जलाने से उत्पन्न होती है। यह गैस
बच्चों को, सर्दियों में साँस की
बीमारियों के प्रति, संवेदनशील बनाती
है।
सस्पेन्ड पर्टीकुलेट मैटर (SPM) कभी कभी हवा में धुऑं-धूल वाष्प के कण लटके रहते हैं। यही
धुँध पैदा करते हैं तथा दूर तक देखने की सीमा को कम कर देते हैं। इन्हीं के महीन
कण, साँस लेने से अपने
फेंफड़ों में चले जाते हैं, जिससे श्वसन
क्रिया तंत्र प्रभावित हो जाता है।
सल्फर डाई आक्साइड (SO2) यह कोयले के जलने से बनती है। विशेष रूप से तापीय विद्युत
उत्पादन तथा अन्य उद्योगों के कारण पैदा होती रहती है। यह धुंध, कोहरे, अम्लीय वर्षा को जन्म देती है और तरह-तरह की फेफड़ों की बीमारी पैदा करती है।
वायु प्रदूषण - कारण और निवारण
वायु प्रदूषण विश्व की गम्भीरतम समस्याओं में से एक है। यह
समस्या स्वतः ही विभिन्न समस्याओं को जन्म देती है। वायु प्रदूषण के कारण मानव,
पेड़ पौधों व जीव जन्तुओं का विकास और वृद्धि
प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं। स्वस्थ जीवन के लिये हम सबको स्वच्छ वायु,
जल, भोजन, आवास और प्रदूषण मुक्त
पर्यावरण की आवश्यकता है। वर्तमान परिवेश में बढ़ते शहरीकरण, आधुनिकीकरण, औद्योगिकीकरण, मशीनीकरण और वैज्ञानिक प्रगति की वजह से पारिस्थितिक असन्तुलन की स्थिति पैदा
हो गई है।
वायु प्रदूषण को लेकर सन 1992 में ब्राजील के रियो डि जेनेरो नगर में प्रथम पृथ्वी
सम्मेलन आयोजित हुआ, जिसमें 178 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मेलन
में पेड़-पौधों व प्राणी प्रजातियों की विविधता को बढ़ाने तथा वैश्विक ऊष्णता
(ग्लोबल वॉर्मिंग) को रोकने पर जोर दिया गया। सन 1997 में जापान के क्योटो शहर में भी पर्यावरण सम्मेलन आयोजित
किया गया। बढ़ते वायु प्रदूषण और पर्यावरण हनन को लेकर बेचैनी हर कहीं महसूस की जा
रही है। अभी हाल ही में, दिल्ली के
विज्ञान भवन में भी पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया गया। पर्यावरण प्रदूषण की समस्या
को दूर करने के लिये हम प्रति वर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाते हैं। आज विकसित राष्ट्र अपने-अपने भौतिक
सुख साधनों की प्राप्ति के लिये अनेक कल-कारखाने लगाकर वायु प्रदूषण को बढ़ावा दे
रहे हैं। इससे न केवल अर्थव्यवस्था और पर्यटन प्रभावित होता है, बल्कि मानव स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएँ भी
सामने आ रही हैं।
विश्व की जनसंख्या तेजी के साथ बढ़ रही है। साथ ही पर्यावरण
का दिनों-दिन बिगड़ता सन्तुलन आज के समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से है। वायु
प्रदूषण सम्बन्धी समस्याओं में कुछ राज्य व्यापी हैं, जबकि कुछ क्षेत्रीय स्तर पर होती हैं। वायु प्रदूषण समस्या
में जागरुकता के बावजूद इसको गम्भीरता से नहीं सोचा गया। अनेक अन्तरराष्ट्रीय,
राष्ट्रीय व क्षेत्रीय पर्यावरणीय सम्बन्धी
सम्मेलनों के बाद भी मानव का रुख इस सम्बन्ध में नकारात्मक सन्देश देता है।
आज हम जिस तरह के वातावरण में जी रह हैं, वह पूरी तरह प्रदूषित हो चुका है। वायु प्रदूषण
की मात्रा दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। जीवन की कैसी विडम्बना है कि जिस
प्रकृति ने हमें शुद्ध जल, वायु, हरी-भरी धरती और शुद्ध पर्यावरण प्रदान किया
उसे हमने अपने-अपने भौतिक सुख साधनों की प्राप्ति के लिये अनेक कल-कारखाने लगाकर
प्रदूषित कर दिया। आज वायु प्रदूषण की समस्या ने विश्व के समस्त प्राणियों के
स्वास्थ्य के आगे एक प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। मानव समुदाय स्वयं को इतना समर्थ
नहीं पाते कि वे इसका हल निकाल सकें। इसे सरकारों की कार्य प्रणाली का दोष मानते
हैं। वर्तमान परिवेश को देखते हुए वायु को प्रदूषित होने से बचाना अत्यन्त आवश्यक
है।
वायु प्रदूषण को उसके स्रोत पर ही रोकना सबसे अच्छा उपाय
होगा। साथ ही प्रौद्योगिकियों में ऐसे सुधार करने होंगे जो हमारे पर्यावरण को न
केवल स्वस्थ बनाए रखे बल्कि उसमें उत्तरोतर वृद्धि भी करें।
Note:- अतः वायु प्रदूषण के संकट से निपटने के लिये
राज्य, राष्ट्रीय और
अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर जमीनी रूप से प्रयास करने की आवश्यकता है। अन्यथा देश ऐसी
स्थिति में पहुँच जाएगा जहाँ शायद अफसोस के अलावा कुछ न होगा। पर्यावरण असन्तुलन
दर्शा रहा है कि प्रकृति ने अपने तेवर बदले हैं। यह बदले तेवर आगे चलकर हमारे लिये
हानिकारक भी हो सकते हैं हमें इस सत्य को आज समझ लेना चाहिए। हम यह भी समझ चुके
हैं कि वायु प्रदूषण के लिये अनेक कारण जिम्मेदार हैं लेकिन इन सभी कारकों का
केन्द्र बिन्दु कहीं-न-कहीं मानव ही है और वहीं सबसे अधिक प्रभावित भी हैं।
वायु प्रदूषण के कारण
1. भौतिकता की प्राप्ति की चाह में वायु प्रदूषण
फैलाने का प्रमुख कारण है। रेडियोधर्मी पदार्थ भी वायु प्रदूषण को बढ़ावा देते
हैं।
2. महानगरों में वाहनों की संख्या में प्रतिवर्ष
वृद्धि होने के कारण वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरण की
गुणवत्ता व स्वच्छ वायु की कमी होती जा रही है।
3. उद्योगों व कारखानों से निकलने वाली जहरीली
गैसों से पर्यावरण का सन्तुलन दिनो-दिन बिगड़ता जा रहा है।
4. बढ़ते शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, आधुनिकीकरण और वैज्ञानिक प्रगति की वजह से वनों व हरे भरे पेड़ पौधों का क्षय
तेजी से हो रहा है जिसके फलस्वरूप वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है।
5. देश के अन्य भागों में व ग्रामीण क्षेत्रों से
रोजगार की तलाश में लोगों का महानगरों का पलायन तेजी से बढ़ रहा है। जिससे
प्राकृतिक संसाधनों का अधिक दोहन हुआ है।
6. धूल के कण, ऐरोसोल, फ्लाई एश,
कोहरा तथा धुआँ भी वायु प्रदूषण को बढ़ावा देते
हैं, ये अति सूक्ष्म आकार के
ठोस तथा गैसीय कण हैं जो गैसीय माध्यम में बिखरे रहते हैं तथा बादल जैसा आकार
बनाते हैं।
7. खेती में यूरिया व अन्य कृषि रसायनों का अनुचित
प्रयोग पर्यावरण के लिये भी एक बड़ी समस्या बन गया है जिसके परिणामस्वरूप धान के
खेतों से निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसों जैसे मीथेन व नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन
वातावरण में बढ़ जाता है जिसके दुष्परिणाम आज हम जलवायु परिवर्तन के रूप में देख
रहे हैं जो अन्ततः मनुष्यों समेत सभी जीव धारियों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहे
हैं।
8. पेट्रोलियम पदार्थों के अन्धाधुन्ध उपयोग के
कारण प्रदूषण पूरी दुनिया और खासकर विकसित देशों की एक बड़ी समस्या के रूप में उभर
चुकी है। जिसके कारण आज कई प्रकार की बीमारियाँ फैल रही हैं और प्रकृति का पूरा
पारिस्थितिक सन्तुलन ही बिगड़ता जा रहा है।
9. फसल कटाई के उपरान्त दाने निकालने के बाद
प्रायः किसान भाई फसल अवशेषों को जला देते हैं, पंजाब, हरियाणा और
पश्चिम उत्तर प्रदेश के साथ-साथ देश के अन्य भागों में भी यह काफी प्रचलित हैं।
फसल अवशेषों के जलाए जाने से निकलने वाले धुएँ से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता ही है।
वायु प्रदूषण के प्रभाव
1. विकास कार्यों के लिये वन भूमि को गैर-वन भूमि
में परिवर्तित किया जा रहा है। कच्चे माल के लिये वनों का सफाया किया जा रहा है।
फलस्वरूप पारिस्थितिक असन्तुलन की स्थिति पैदा हो गई है। इसका दुष्प्रभाव नगरों के
मौसमी चक्र पर भी साफ दिखने लगा है।
2. ग्रीनहाउस गैसों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड क्लोरो
फ्लोरो कार्बन (सीएफसी), नाइट्रस ऑक्साइड
व मीथेन आदि के कारण अंटार्कटिका और दक्षिण ध्रुव के ऊपर ओजोन परत में छिद्र का
आकार बढ़ता जा रहा है। ओजोन परत पृथ्वी पर आने वाली अल्ट्रावायलेट विकिरण को रोकती
है, जिससे त्वचा कैंसर और
केटरेक्ट जैसे रोक हो जाते हैं। वायु प्रदूषण के कारण ओजोन परत का रिक्तिकरण बढ़ता
ही जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व मौसमी संगठन के शीर्ष मौसम वैज्ञानिक
गैर ब्राथम के अनुसार ओजोन परत का छिद्र लगभग 27 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फैला है जिसके भविष्य में कुछ और
बढ़ने की सम्भावना है।
3. प्रदूषित वायु में घुली जहरीली गैसों जैसे
कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड
व कार्बन मोनो ऑक्साइड के कारण आज न जाने कितने प्रकार की साँस और फेफड़ों की
बीमारियाँ आम हो गई हैं, जिससे मनुष्य काम
करने के योग्य नहीं रहता है, प्रदूषित वायु
विभिन्न प्रकार की एलर्जी को भी जन्म देती है।
4. महानगरों में वायु प्रदूषण भी मनुष्य के जीवन
को तनाव युक्त बनाए रखने का एक प्रमुख कारण है।
5. वायु प्रदूषण के कारण ‘ग्लोबल वॉर्मिंग’ जैसी विश्व स्तरीय समस्या से मानव को जूझना पड़ रहा है, जिसके कारण वातावरण का तापमान निरन्तर बढ़ता जा रहा है,
एक अनुमान के अनुसार यदि वायु प्रदूषण को कम
करने के प्रयास नहीं हुए तो 2040 तक सभी
ग्लेशियरों के समाप्त होने का खतरा पैदा हो जाएगा।
5. पेट्रोलियम पदार्थों के अन्धाधुन्ध उपयोग के
कारण वायु प्रदूषण सम्पूर्ण विश्व के लिये एक बड़ी समस्या बन चुकी है। जिससे
प्रकृति का पूरा पारिस्थितिक सन्तुलन ही बिगड़ता जा रहा है।
6. प्रदूषित वातावरण में ‘अम्लीय वर्षा’ भी मानव, पेड़-पौधों व
अन्य जीव-जन्तुओं के लिये एक अभिशाप है, जिससे मनुष्यों में श्वसन तंत्र, आहार तंत्र व त्वचा सम्बन्धी अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं। नाइट्रोजन परॉक्साइड
तथा सल्फर डाइऑक्साइड गैस वायु में पाई जाती हैं, ये जल में घुलकर अम्लीय वर्षा बनाती हैं।
7. चारकोल, प्लास्टिक व पॉलिथीन वायु में जलकर कार्बन मोनोऑक्साइड
उत्पन्न करते हैं जो हीमोग्लोबिन के साथ संयोग करके कार्बोक्सी हीमोग्लोबिन बनाती
है जिसमें ऑक्सीजन की वाहक क्षमता कम होती है इस प्रकार श्वसन के लिये कोशिकाओं को
पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, अतः व्यक्तियों में बेहोशी, हृदय सम्बन्धी तथा श्वसनी परिवर्तन होते हैं।
8. यूरिया से निकलने वाली ग्रीन हाउस गैस (नाइट्रस
ऑक्साइड) वायुमण्डल में उपस्थित ओजोन परत को नष्ट करती है। ओजोन परत सूर्य से
निकलने वाली खतरनाक अल्ट्रा वॉयलेट किरणों को रोकने में मदद करती है, अल्ट्रा वॉयलेट किरणों की वजह से मनुष्यों में
त्वचा कैंसर हो जाता है।
9. फसल अवशेषों के जलाए जाने से निकलने वाले धुएँ
की वजह से हृदय और फेफड़े से जुड़ी बीमारियाँ भी बढ़ती हैं, धुएँ में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो-ऑक्साइड और पार्टिकुलेट जैसे हजारों हानिकारक
तत्व मिले हो सकते हैं। जिनमें व्यक्ति की सेहत को बुरी तरह से नुकसान पहुँचाने की
क्षमता होती है।
वायु प्रदूषण को दूर करने के उपाय
1. ज्यादा-से-ज्यादा वृक्षारोपण किया जाये इससे
पर्यावरण को स्वच्छ बनाने में मदद मिलेगी। वनों के विनाश व कटाव को रोकने के लिये
विशेष उपाय किये जाएँ, आदर्श पर्यावरण
के लिये यह आवश्यक है कि देश के एक-तिहाई हिस्से यानी 33 प्रतिशत भाग पर जंगल होने चाहिए। स्वच्छ पर्यावरण के लिये
इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। अग्नि से भी वनों की रक्षा करना आवश्यक है।
2. कल-कारखानों और उद्योगों को आबादी से दूर लगाया
जाये, क्योंकि इनसे निकलने वाले
धुएँ और गैसों से वायु प्रदूषण को रोका जा सकता है।
3. वायु को सर्वाधिक प्रदूषित करने वाले
पेट्रोलियम पदार्थों के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश की जानी चाहिए। आयातित मदों में
हम सबसे अधिक खर्च पेट्रोलियम पदार्थों के आयात पर करते हैं। हमारी जरूरत का लगभग 70 प्रतिशत पेट्रोलियम तेल आयातित है। इससे
विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी इसके लिये तिलहन वृक्षों से प्राप्त होने वाले बीज
के तेलों को पेट्रोलियम उत्पादों के स्थान पर उपयोग में लाया जा सकता है, इनमें नीम, तुंग, करंज व जेट्रोफा
(रतन ज्योत) इत्यादि से प्राप्त होने वाले तेलों को बायो-डीजल के रूप में उपयोग
में लाने की प्रबल व अपार सम्भावनाएँ हैं।
4. सरकार, वैज्ञानिकों और उद्योगपतियों को मिलकर यह विचार करना होगा कि किस तरह ऐसी
परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाएँ जिससे आम आदमी पर्यावरण को सुरक्षित बनाए रखने के
लिये भौतिक विलासिता के साधनों जैसे फ्रिज, एयर कंडीशन व अन्य शीत कूलन उपकरणों का सोच समझकर प्रयोग
करें, क्योंकि इन्हीं साधनों
में प्रयोग होने वाली गैस क्लोरो फ्लोरो कार्बन ही ‘ग्रीन हाउस इफेक्ट’ का मुख्य कारण हैं।
5. वाहनों में 5 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) के प्रयोग को
बढ़ावा देना चाहिए। इथेनॉल पर्यावरण हितैशी ज्वलनशील ईंधन है। यह पेट्रोल के
अन्तर्दहन को बढ़ाता है जिसके परिणामस्वरूप कम-से-कम प्रदूषित गैसें वातावरण में
विसर्जित होती हैं। इसे इंजन की बनावट में बिना कोई परिवर्तन किये प्रयोग किया जा
सकता है। इसके अलावा सीएनजी के प्रयोग से भी वायु प्रदूषण की समस्या को कम किया जा
सकता है।
6. प्रदूषित वायु से होने वाले दुष्प्रभावों से आम
जनता को अवगत कराना अति आवश्यक है। इसके लिये प्रदर्शनी, पर्यावरण सम्मेलन, पर्यावरण दिवस एवं वन महोत्सव आदि का आयोजन किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में,
समाचार पत्रों, रेडियो और दूरदर्शन भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
7. वायु प्रदूषण पर हुई विभिन्न खोजों, अनुसन्धानों और परिणामों से जनता को अवगत कराया
जाये। ताकि पता चले कि प्रदूषित वायु के क्या-क्या दुष्परिणाम होते हैं और इसे
कैसे कम किया जा सकता है।
8. सरकारी और निजी वाहनों का सही रख-रखाव और उनकी
संख्या में कमी की जानी चाहिए। इसके लिये वाहनों की समय-समय पर जाँच की जानी
चाहिए। अधिक धुआँ फेंकने वाले वाहनों पर भारी जुर्माना लगाया जाये। इसके लिये
पर्याप्त कानूनी उपाय भी किये जाने चाहिए।
9. ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के साधन व आम
जीवन की सुविधाएँ बढ़ाई जाएँ जिससे ग्रामीणों का रोजगार की तलाश में शहर की ओर
पलायन रोका जा सके।
10. इसके साथ ही कृषि प्रौद्योगिकियों में ऐसे
सुधार करने होंगे जो हमारे पर्यावरण को न केवल स्वस्थ बनाए रखें बल्कि उसमें
उत्तरोत्तर वृद्धि भी करें हमें खेती में यूरिया का विवेकपूर्ण उपयोग करना होगा।
11. ऊर्जा के वैकल्पिक, सतत व स्वच्छ स्रोत के लिये पूरी दुनिया के अलग-अलग देशों
में अपने-अपने ढंग से प्रयत्न किये जा रहे हैं। परमाणु ऊर्जा, सौर-ऊर्जा, पवन ऊर्जा व प्राकृतिक गैस आदि के रूप में कई विकल्प अब
उपलब्ध हो चुके हैं। परन्तु विकिरण से जुड़े खतरों, अत्यधिक लागत व अन्य कमियों की वजह से इन पर निर्भर नहीं
रहा जा सकता है। भारत में रतनजोत व करंजा से प्राप्त होने वाले तेल को बायो-डीजल
के रूप में प्रयोग करने की प्रबल व अपार सम्भावनाएँ दिखती हैं।
12. साधारणतया किसान भाई फसल उत्पादन में फसल
अवशेषों के योगदान को नजर अन्दाज कर देते हैं। उत्तर-पश्चिम भारत में धान-गेहूँ
फसल चक्र के अन्तर्गत फसल अवशेषों का प्रयोग आम बात है। कृषि में मशीनीकरण और
बढ़ती उत्पादकता की वजह से फसल अवशेषों की अत्यधिक मात्रा उत्पादित होती जा रही
है। फसल अवशेषों को जलाने के बजाय खेती में प्रयोग करके मृदा में कार्बनिक कार्बन
की मात्रा में सुधार के साथ-साथ वायु प्रदूषण को भी कम किया जा सकता है।
यद्यपि फसल अवशेष का पोषक तत्व प्रदान करने में
महत्त्वपूर्ण योगदान है, परन्तु अधिकांशतः
फसल अवशेषों को खेत में जला दिया जाता है या खेत से बाहर फेंक दिया जाता है। फसल
अवशेष पौधों को पोषक तत्व प्रदान करने के साथ-साथ मृदा की भौतिक, रासायनिक और जैविक क्रियाओं पर भी अनुकूल
प्रभाव डालते हैं। दुर्भाग्यवश यह तकनीक पर्याप्त प्रचार-प्रसार के अभाव में
किसानों में अधिक लोकप्रिय नहीं हो रही हैं।
कोई टिप्पणी नहीं: