जलवायु और उसका वर्गीकरण Climate And Its
Classification
किसी एक निश्चित स्थान पर एक लम्बे समय तक मौसम की स्थिथायों का सामान्य चित्रण ही उस स्थान की जलवायु (Climate) कहलाता है
किसी भी स्थान के लोगों का रहन-सहन वहां कि सभ्यता संस्कृति
व आर्थिक उन्नति जलवायु से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती है किसी स्थान की जलवायु वहां के
तापमान, वर्षा वायु का दबाव,
पवनों कि दिशा, पर्वत समुंद्र से दुरी, अक्षांश आदि कई बातों पर निर्भर करती है संसार के विभिन्न
भागों में विभिन्न प्रकार की जलवायु पायी जाती है जलवायु का अध्ययन करने के लिए बहुत
से यंत्रों का प्रयोग किया जाता है, जिनकी सहायता से किसी स्थान का तापमान दबाब, पवनों की दिशा, वर्षा, बादल आदि से सम्बन्धित
अध्ययन किए जाते हैं
विश्व की जलवायु
- जलवायु किसी स्थान के वातावरण की दशा को व्पक्त करने के लिये प्रयोग किया जाता है।
- यह शब्द मौसम के काफी करीब है। पर जलवायु और मौसम में कुछ अन्तर है।
- जलवायु बड़े भूखंडो के लिये बड़े कालखंड के लिये ही प्रयुक्त होता है जबकि मौसम अपेक्षाकृत छोटे कालखंड के लिये छोटे स्थान के लिये प्रयुक्त होता है।
जलवायु के प्रकार
- संसार के विभिन्न स्थानों पर मुख्य रूप से 15 प्रकार की जलवायु होती है
- विषुवतीय जलवायु
- मानसूनी जलवायु प्रदेश
- उष्ण मरुस्थल अथवा सहारा तुल्य जलवायु प्रदेश
- उष्ण घास के मैदान अथवा सूडान अथवा सवाना तुल्य जलवायु प्रदेश
- भूमध्यसागरीय जलवायु प्रदेश
- शीतोष्ण मरुस्थलीय या ईरान तुल्य जलवायु प्रदेश
- तूरान तुल्य अथवा स्टैपी जलवायु प्रदेश
- चीन तुल्य जलवायु प्रदेश
- पश्चिमी यूरोप तुल्य जलवायु प्रदेश
- प्रेयरी तुल्य जलवायु प्रदेश
- सेण्ट लॉरेन्स या मंचूरिया तुल्य प्रदेश
- साइबेरिया अथवा टैगा तुल्य जलवायु प्रदेश
- टुण्ड्रा तुल्य जलवायु या ध्रुवीय प्रदेश
- हिमाच्छादित प्रदेश
- तिब्बत तुल्य या उच्च पर्वतीय प्रदेश
1. विषुवतीय जलवायु
स्थिति और विस्तार- यह प्रदेश विषुवत् रेखा के दोनों ओर 5° उत्तरी और 5° दक्षिणी अक्षांशों के बीच स्थित है। कुछ स्थानों पर इस
क्षेत्र का विस्तार 10° तक इन्हीं
उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांशों में पाया जाता है। ये समस्त प्रदेश लगभग 960 किलोमीटर की चौड़ाई में सम्पूर्ण पृथ्वी के
विषुवतरेखीय क्षेत्र को घेरे हुए हैं। विषुवत् रेखा के निकट होने के कारण ही इस
प्रदेश को विषुवत रेखीय प्रदेश कहते हैं।
समुद्र तल से ऊंचाई के आधार पर सामान्यतः इस प्रदेश को दो
भागों में विभाजित किया जाता है-
निम्न विषुवत रेखीय जलवायु प्रदेश- जो भाग 2,000 मीटर से नीचे पाए जाते हैं। इनका क्षेत्रफल
सर्वाधिक है।
उच्च धरातलीय विषुवत रेखीय जलवायु प्रदेश- जो विषुवत रेखीय
भागों में 2,000 मीटर से अधिक
ऊंचे भाग हैं। इनका क्षेत्र सीमित है। ये दक्षिणी अमरीका में अमेजन बेसिन तथा
पूर्वी अफ्रीका में यूगाण्डा के माउण्ट एल्गन, कीनिया के माउण्ट कीनिया तथा किलीमंजारो पर्वत (तंजानिया)
में विस्तृत हैं।
विषुवत रेखीय प्रदेशों के अधिकांश भाग दक्षिणी अमरीका,
अमेजन बेसिन, अफ्रीका के मध्यवर्ती भाग तथा दक्षिण पूर्वी एशिया के
द्वीपों में विस्तृत हैं।
दक्षिण अमरीका में इस प्रदेश का सबसे बड़ा विस्तृत भाग
अमेजन बेसिन में पाया जाता है, किन्तु पश्चिम
में यह इक्वेडोर के पठारी भाग बोलिविया, पेरू, कोलम्बिया के मैदानी
भागों में भी फैला हुआ है।
मध्य अमरीका में पनामा, कोस्टारिका, निकारागुआ,
होण्डुरास और ग्वाटेमाला के पूर्वी भाग भी
समुद्री प्रभाव के कारण इस प्रकार की जलवायु प्रदेश के अन्तर्गत आ जाते हैं।
अफ्रीका में इस जलवायु प्रदेश का विस्तार कांगो बेसिन,
मध्य अफ्रीकी गणराज्य, दक्षिण-पूर्वी नाइजीरिया, गिनी की खाड़ी का तटीय भाग एवं अफ्रीका के पूर्वी तटीय भाग
में पाया जाता है।
दक्षिण-पूर्वी एशिया में मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलिपीन द्वीप
समूह में इस प्रकार की जलवायु पाई जाती है।
तापमान तथा वायुदाब- इस समस्त प्रदेश में वर्ष-पर्यन्त
सूर्य की किरणे लम्ववत् पड़ती हैं, अतः तापमान सदा ऊंचे
रहते हैं। तापमान का औसत 26.7° सेण्टीग्रेड
रहता है। दैनिक तथा वार्षिक ताप परिसर 2.5° से 4° सेण्टीग्रेड रहता है। इस
प्रकार यहाँ वर्ष भर तापमान समान रूप से ऊँचे रहते हैं, क्योंकि ताप में मोसमी परिवर्तन नाममात्र का होता है।
वर्षभर दिन और रात की लम्बाई बराबर होती है। इस प्रदेश में सूर्य एकदम उदय और एकदम
ही अस्त होता है, इसलिए यहाँ
गौधूलि प्रकाश दिखायी नहीं देता है। यहाँ शीत ऋतु नहीं होता निरन्तर तापमान ऊँचे
रहने के कारण वायुदाब निम्न रहता है। इसी कारण ये प्रदेश शान्त पेटी के क्षेत्र
कहलाते हैं।
वर्षा- दोपहर के समय घने मेघ छाए रहते हैं और वर्षा घोर
गर्जन एवं चमक के साथ भारी बौछारों के रूप में होती है। यह वर्षा संवाहनिक वर्षा
कहलाती है और प्रतिदिन ठीक समय पर दोपहर बाद चार बजे के आसपास होती है। यद्यपि
यहाँ वर्षा साल भर प्रतिदिन होती है, किन्तु मार्च और सितम्बर में वर्षा अधिक होती है। इस प्रदेश की वार्षिक वर्षा
का औसत 200 सेण्टीमीटर के आस-पास
रहता है, परन्तु कहीं-कहीं 250 सेण्टमीटर से 500 सेमी तक वर्षा होती है। प्रदेश में प्रत्येक वर्ष लगभग 75 से 150 तड़ित झंझावात आते हैं।
प्राकृतिक वनस्पति- उष्ण और आर्द्र जलवायु के कारण इन
प्रदेशों में सघन वनस्पति पायी जाती है। यहाँ भूमध्यरेखीय सदाबहार चौड़ी पती वाले
वन पाए जाते हैं जिन्हें सेल्वास (Selvas) कहते हैं। इन वृक्षों की चोटियाँ छतरीनुमा होती हैं जिनसे सूर्य प्रकाश छनकर
भूमि तक नहीं पहुंच पाता है। वायु एवं प्रकाश के लिए वृक्षों में एक प्रकार की
प्रतिद्वन्द्विता सी रहती है। यहाँ के वनों में अनेक प्रकार के वृक्ष मिलते हैं।
वनों में सदा हरियाली रहती है और ऐसा प्रतीत होता है कि वृक्षों का विश्राम काल है
ही नहीं। वर्षभर वनस्पति की समस्त क्रियाएँ अर्थात् पत्तियाँ आना एवं गिरना,
फूल खिलना, फलों का पकना और इन सबका नष्ट होना एक साथ चलता रहता है।
यहाँ के वनों में महोगनी, बालसम, गटापार्चा, रबड़, एबोनी, सिनकोना, ताड़, बांस, बेंत के वृक्ष पाए जाते हैं। वृक्ष 60 से 70 मीटर ऊंचे होते हैं। बीच सघन लताएँ भी मिलती हैं। इन वनों की लकड़ियाँ बड़ी
कठोर होती हैं। इनकी लकड़ियाँ इमारती काम के लिए सर्वोत्तम मानी जाती हैं। ये
उद्योगों में भी काम में आती हैं। भूमि के निकट ताड़, बाँस, नारियल, केला, अनन्नास, आदि के छोटे
वृक्ष भी कुंजों में पाये जाते हैं।
निवासी- यहाँ के मूल निवासी असभ्य तथा जंगली हैं। इनका रंग
काला, होठ मोटे तथा नथुने चौड़े
होते हैं। कांगो बेसिन के निवासी पिग्मी, मलेशिया के सकाई और अमेजन के बोरो इसी प्रकार के निवासी हैं। इनका अधिकांश समय
शिकार करने, मछली पकड़ने तथा
फल एकत्रित करने में व्यतीत होता है।
आर्थिक विकास- विषुवत रेखीय प्रदेश आर्थिक विकास की दृष्टि
से विश्व के सबसे पिछड़े भाग हैं। इसके निम्न कारण हैं-
यहाँ की जलवायु स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद है। निरन्तर ऊँचा
तापमान, नम पवनें व सदैव वर्षा,
आदि तत्व मानवजीवन के विकास में सहायक नहीं हैं,
अत: इन प्रदेशों को शक्तिहीनों का या काहिल प्रदेश
कहा जाता है।
इसके अतिरिक्त यहाँ के जीवजन्तु मानव के लिए हानिकारक हैं।
विषुवत रेखीय प्रदेशों की बीमारियाँ (मलेरिया, पीला बुखार, सोने की बीमारी (Sleeping
sickness) विश्वविख्यात हैं।
यहाँ के वन सघन होने से उनमें प्रवेश करना एक कठिन समस्या
है, फिर यहाँ पर छोटे से
क्षेत्र में अनेक प्रकार के विशेष कठोर लकड़ी के वृक्ष मिलते हैं, अतः इनका विदोहन बहुत ही कठिन है।
स्थान-स्थान पर नदी, नालों, दलदल एवं कृषि
भूमि की कमी के कारण यह क्षेत्र मानव बसाव के अनुकूल नहीं है। आवागमन के साधनों का
सुगम विकास भी यहाँ नहीं किया जा सकता है।
जनसंख्या बहुत कम तथा आदिम निवासियों की है। अतः यहाँ के 10 प्रतिशत भू-भाग पर विश्व की जनसंख्या का केवल 5 प्रतिशत ही इन प्रदेशों में निवास करता है। यह
भी नदियों के तट एवं द्वीपों पर ही केन्द्रित है।
जावा एवं दक्षिणी नाइजीरिया ही सघन आबाद हैं, अतः वहाँ कुछ विकास भी हुआ है।
2. मानसूनी जलवायु प्रदेश
स्थिति और विस्तार- उष्ण मानसूनी प्रदेश उत्तरी और दक्षिणी
गोलाद्धों में 8° और 30° अक्षांशों के मध्य महाद्वीपों के पूर्वी एवं
मध्यवर्ती भागों में स्थित हैं। अतः ये उष्ण कटिबन्ध में सन्मार्गी पवनों के अधीन
हैं। इन प्रदेशों में-
दक्षिणी एशिया में भारत, म्याँमार, पाकिस्तान,
बांग्लादेश, श्रीलंका, थाईलैण्ड,
कम्बोडिया, वियतनाम, लाओस, दक्षिणी चीन एवं ताइवान द्वीप आते हैं।
उत्तरी अमरीका में पश्चिमी द्वीप समूह और दक्षिणी फ्लोरिडा।
मध्य अमरीका में पश्चिमी तट और पनामा का तटीय प्रदेश।
दक्षिणी अमरीका में कोलम्बिया और वेनेजुएला का उत्तरी तथा
ब्राजील का उत्तर-पूर्वी तट
अफ्रीका में पूर्वी अफ्रीका का तटीय भाग मोजाम्बिक और
मेडागास्कर द्वीप
आस्ट्रेलिया की उत्तरी तटीय भाग और न्यूगिनी,का उत्तर-पूर्वी भाग सम्मिलित किए जाते हैं।
यद्यपि चीन, कोरिया और जापान
में भी मानसूनी पवनों द्वारा वर्षा होती है, लेकिन यह शीतोष्ण कटिबन्ध में होने से यहाँ के प्रदेश
शीतोष्ण मानसूनी या चीन तुल्य जलवायु के अन्तर्गत आते हैं।
जलवायु- मानसूनी प्रदेश में ग्रीष्म-ऋतु तर और गर्म तथा
शीत-ऋतु साधारणतः ठंडी और शुष्क होती है।
तापमान- यहाँ वार्षिक तथा दैनिक तापान्तर अधिक नहीं होता
है। यहाँ ग्रीष्म ऋतु का औसत तापमान 27" सेण्टीग्रेड और 32° सेण्टीग्रेड तथा शीत-ऋतु का 18° सेण्टीग्रेड से 22° से. तक रहता है।
ये भाग संशोधित सन्मार्गी पवनों के मार्ग में पड़ते हैं और इन भागों में शीत
प्रायः शुष्क रहती है। विशेष वायुदाब व्यवस्था के कारण इन प्रदेशों में 6 माह पवनें सागरों से स्थल की ओर
(ग्रीष्मकालीन) तथा शीतकाल में 6 माह पवने स्थल
से सागरो की ओर चलती हैं जिन्हें मानसून कहते हैं।
वर्षा- मानसूनी जलवायु प्रदेश में 85% वर्षा ग्रीष्म ऋतु में होती है। इन प्रदेशों में वर्षा की
मात्रा प्राकृतिक दशा, वायुदाव और वायु
की दशा पर निर्भर करती है, जैसे भारत में
चेरापूंजी में औसत वार्षिक वर्षा लगभग 1,125 सेण्टीमीटर होती है। परन्तु पश्चिमी घाट पर यह औसत 200 सेण्टीमीटर रहता है। मैदानी भागों में 150 सेण्टीमीटर तक तथा कभी-कभी चक्रवातों से भारी
वर्षा होती है। इन चक्रवातों को चीन में टाइफून, पश्चिमी द्वीप समूह में हरिकेन, फिलिपीन्स में बेंग्विस और उत्तर-पश्चिम ऑस्ट्रेलिया में
विली-विलीज, बंगाल की खाड़ी
में तूफानी चक्रवात कहते हैं।
प्राकृतिक वनस्पति- इन प्रदेशों में पर्याप्त वर्षा और
गर्मी के कारण प्राकृतिक वनस्पति की प्रचुरता पायी जाती है। यहाँ पर पायी जाने
वाली वनस्पति वर्षा का अनुसरण करती है। जिन भागों में वर्षा 200 सेण्टीमीटर से भी अधिक होती है वहाँ सदाबहार
वन पाए जाते हैं, किन्तु ये वन भूमध्यरेखीय
वनों की भांति सघन झाड़ीदार नहीं होते हैं। इनके नीचे अनेक प्रकार के पौधे उग आते
हैं। इन वनों में महोगनी, , साल, सागवान, लॉगवुड, आदि के वृक्ष पाए
जाते हैं। 100 से 200 सेण्टीमीटर वर्षा वाले भागों में चौड़ी पती
वाले मानसूनी पतझड़ वन मिलते हैं। इन वनों में साल, सागौन, , बांस, आम, जामुन, शहतूत, आदि के बहुमूल्य वृक्ष मिलते हैं। आर्थिक
दृष्टिकोण से ये भूमध्यरेखीय वनों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इनकी लकड़ी उत्तम होती है और ये वन कम
सघन होते हैं। जहाँ वर्षा 50 से 100 सेण्टीमीटर के बीच होती है वहाँ घास के मैदान
तथा खेजड़ा, खैर, बबूल, नीम, बड़, पीपल, गूलर, हर्र, बेहड़ा, कीकर, आदि के वृक्ष पाए
जाते हैं। 50 सेण्टीमीटर से
कम वर्षा वाले भागों में केवल शुष्क कैंटीली झाड़ियाँ ही पैदा होती हैं।
आर्थिक विकास- इन प्रदेशों के लोगों का मुख्य उद्यम कृषि व पशुपालन
है। यहाँ के उपजाऊ भागों में चावल, जूट, चाय, कपास, तिलहन, गन्ना, गेहूँ, तम्बाकू, मक्का, दालें, फल, सब्जियाँ, एवं बगाती फसलें, , काजू, केला, नारियल, गरम मसाले, चाय, कहवा प्रमुख उत्पादन हैं। फलों के अन्तर्गत आम,
लीची, जामुन, केला, पपीता, अमरूद, अनार, सेव, अंगूर, सन्तरे, मौसमी, कटहल, आदि पैदा किए जाते हैं।
भारत वर्तमान एशिया का प्रधान दुग्ध व डेयरी पदार्थ उत्पादक देश बनता जा रहा है।
विश्व का अधिकांश चावल व बड़ी मात्रा में कपास, गन्ना और चाय के उत्पादन में यह प्रदेश प्रसिद्ध है।
कृषि उत्पादन व मानवीय क्रियाकलाप, अनावृष्टि, बाढ़, आदि से बराबर प्रभावित रहते हैं। अतः यहाँ तेजी
से सिंचाई का विकास किया गया है।
खनिज सम्पत्ति- अधिकांश देशों में अनेक प्रकार के खनिज
निकाले जाते हैं। जैसे ब्राजील में लोहा और मैंगनीज, वेनेजुएला में खनिज तेल, यह देश विश्व का 10 प्रतिशत खनिज तेल का उत्पादन करता है।
भारत में लौह- अयस्क, कोयला, मैंगनीज, अभ्रक, खनिज तेल, सोना, आदि निकाले जाते हैं। अयस्क और कोयला, मैंगनीज और अभ्रक का निर्यात किया जाता है।
उद्योग- भारत, पूर्वी ब्राजील एवं पूर्वी आस्ट्रेलिया में अनेक उद्योगों का तेजी से विकास
किया जा चुका है। लोहाइस्पात उद्योग, वस्त्र उद्योग, पेट्रोरसायन व
अन्य रसायन उद्योग, शक्कर उद्योग,
सीमेण्ट, इंजीनियरिंग, यातायात, मशीनी उपकरण,
भारी विद्युत मशीनें एवं जूट उद्योग यहाँ के
प्रमुख उद्योग हैं।
व्यापार- व्यापारिक दृष्टि से भी मानसूनी देश महत्वपूर्ण
हैं। पश्चिम के प्रमुख औद्योगिक देशों की खाद्य एवं कच्चे माल की आवश्यकताओं की
पूर्ति अधिकांशतः इन्हीं देशों से होती है। जूट, चाय, काजू, शक्कर, गर्म मसाले, सिलेसिलाए वस्त्र,
कीमती कलात्मक वस्तुएँ, चमड़ा, खालें, मैंगनीज, अयस्क, कोयला, आदि निर्यात किए जाने वाले पदार्थ हैं। भारत, ब्राजील व आस्ट्रेलिया, आदि प्रधान आयात-निर्यात वाले देश हैं।
निवासी- मानसूनी देशों में जनसंख्या का घनत्व विश्व में
अत्यधिक पाया जाता है। मानव आवास की प्रमुख इकाइयाँ गाँव हैं, जो नदियों की घाटी अथवा मैदानों में किसी नदी,
झील अथवा अन्य जलस्रोतों के निकट स्थित होते
हैं। बांग्लादेश, केरल, गंगा का निचली घाटी एवं दक्षिणी चीन विशेष रूप
से सघन बसे हैं।
3. उष्ण मरुस्थल अथवा सहारा तुल्य जलवायु प्रदेश
स्थिति और विस्तार- उष्ण मरुस्थल प्रदेश उत्तरी तथा दक्षिणी
गोलार्द्ध में 15° से 30° अक्षांशों
के बीच महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में स्थित हैं। इस जलवायु प्रदेश का सबसे बड़ा
भाग सहारा मरुस्थल है जो लाल सागर से अन्ध महासागर तक फैला हुआ है। इसी कारण इस
जलवायु को सहारा तुल्य जलवायु प्रदेश भी कहा जाता है। इसके अलावा ईरान, बलूचिस्तान, सऊदी थार के मरुस्थल (एशिया) में भी यह जलवायु पायी जाती
है। इन मरुस्थलीय प्रदेशों ने भूमण्डल का 17% भाग घेर रखा है, किन्तु विश्व की केवल 4 प्रतिशत
जनसंख्या ही यहाँ निवास करती है।
इन प्रदेशों का विस्तार अन्य महाद्वीपों में निम्न प्रकार
है-
एशिया में दक्षिणी-पश्चिमी भाग में सम्पूर्ण अरब प्रायद्वीप,
दक्षिण इजराइल, जोर्डन, सीरिया, इराक, ईरान के अधिकांश भाग और भारत में थार मरुस्थल हैं।
दक्षिणी अमरीका में अटाकामा मरुस्थल (4° दक्षिण से 31° दक्षिण) के अन्तर्गत पेरू के तटवर्ती तथा उत्तरी चिली के
भाग आते हैं।
आस्ट्रेलिया में पश्चिमी मरुस्थल (विक्टोरिया) इसी प्रदेश
के अन्तर्गत आता है।
उत्तरी अमरीका में सोनोरान और एरीजोना के मरुस्थल।
दक्षिणी अफ्रीका में कालाहारी मरुस्थल।
जलवायु- इस प्रदेश की जलवायु की मुख्य विशेषता उसकी उष्णता
और शुष्कता है।
तापमान- विश्व में सबसे अधिक तापमान इसी प्रदेश में पाए
जाते हैं। सहारा में अल-अजीजिया का तापमान 58.4° सेण्टीग्रेड, कैलीफोर्निया में मृत घाटी का तापमान 57° सेण्टीग्रेड, थार में जैकोबाबाद का 52° सेण्टीग्रेड,
उत्तरी अमरीका के सोनोरान मरुस्थल में 56° सेण्टीग्रेड तापमान पाया जाता है। उत्तरी
गोलार्द्ध में इन प्रदेशों का औसत तापमान जुलाई में 32° सेण्टीग्रेड और जनवरी में 15° सेण्टीग्रेड रहता है। दक्षिणी गोलार्द्ध में इन प्रदेशों
में औसत तापमान कम रहता है, क्योंकि
महाद्वीपों की चौड़ाई कम है, अतः समुद्री
प्रभाव अधिक पड़ता है। दक्षिणी गोलार्द्ध में तापमान 21° सेण्टीग्रेड और जनवरी मास का 10° सेण्टीग्रेड रहता है। इस प्रदेश में दैनिक और वार्षिक ताप
परिसर भी बहुत अधिक रहता है। यहाँ दैनिक ताप परिसर 7° सेण्टीग्रेड रहता है, किन्तु सहारा में कहीं-कहीं या अन्तर 30° सेण्टीग्रेड तक रहता है।
तापमान में तेज परिवर्तन होने से सायंकाल के समय तेज ऑधियाँ
चलती हैं जिन्हें ‘धूल-दानव’
कहा जाता है। झुलसा देने वाली गर्म पवनों को
सिमूम, शहाली, खमसिन और भारत में ‘लू’ कहा जाता है।
वर्षा- इन प्रदेशों में वर्षा का प्राय: अभाव पाया जाता है।
कहीं भी साल भर में 25 सेण्टीमीटर से
अधिक वर्षा नहीं होती है। वर्षा का वार्धिक औसत 12 सेंटीमीटर है। सहारा के सभी भागों में 12 सेण्टीमीटर से भी कम वर्षा होती है। कई भाग
ऐसे भी हैं, जहाँ सालभर
विल्कुल वर्षा नहीं होती है। दक्षिण अमरीका के इक्वावे नगर में वर्षभर में केवल 1.25 सेण्टीमीटर वर्षा होती है। काहिरा में 2 सेण्टीमीटर, जैकोबाबाद में 7 सेण्टीमीटर और अदन में 5 सेण्टीमीटर
वर्षा होती है। इन प्रदेशों में संवाहनिक वर्षा होती है जो आकस्मिक और तेज बौछारों
के रूप में आती है। तेज धूप के कारण शीघ्र ही जल का वाष्पीकरण हो जाता है। कई बार
वर्ष या दो वर्ष की वर्षा एक ही दिन में (कुछ घण्टों में) ही हो जाती है। इन
प्रदेशों में वर्षा कम होने के निम्नलिखित चार कारण हैं-
ये प्रदेश वर्ष भर सन्मार्गी पवनों के प्रभाव में रहते हैं
जो उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पूर्व दिशा से चलने के कारण महाद्वीपों के पूर्वी भागों
में तो वर्षा कर देती हैं, किन्तु पश्चिमी
भाग शुष्क रह जाते हैं।
पवनों की पट्टियों के खिसकने के फलस्वरूप विषुवत रेखीय
न्यून भार केवल 15° उत्तरी अथवा
दक्षिणी अक्षांश तक ही पहुँच जाता है। दूसरी ओर पछुआ हवाओं की पेटी भी शीतकाल में 30° अक्षांश से नीचे अथवा ऊपर नहीं जा पाती है।
अत: ये प्रदेश शुष्क रह जाते हैं।
इन प्रदेशों में पश्चिमी तट पर ठण्डी जलधाराएँ चलती हैं,
जो इन क्षेत्रों में आर्द्रता की कमी करती हैं।
प्राकृतिक वनस्पति- इन प्रदेशों में गरम और शुष्क जलवायु
होने के कारण वनस्पति का अभाव पाया जाता है। यहाँ की वनस्पति में कॉंटेदार
झाड़ियाँ मुख्य हैं। ये शुष्क जलवायु में भी जीवित रहती हैं। अपनी नमी को बनाए
रखने के लिए इनकी जड़ें लम्बी, पते मोटे और
चिकने होते हैं। इन सबके प्रभाव से ये पौधे वाष्पीकरण के प्रभाव से बच जाते हैं।
इनके अतिरिक्त इनमें कॉटे होते हैं और भीतर से बुरी गन्ध निकलती है जिससे इन्हें
पशु भी नहीं खाते हैं। यहाँ की वनस्पति में खजूर, ताड़, बबूल, खेजड़ी, नागफनी, झाऊ, रामबांस मुख्य हैं।
आर्थिक विकास- इन मरुस्थलों में विस्तृत रूप से निर्जन तथा
बलुही मिट्टी का विस्तार है। यहाँ कठोर जलवायु दशाओं एवं वर्षा के अभाव के कारण
जीवन-निर्वाह बहुत कठिन है। यहाँ के मौसम में परिवर्तन नहीं के बराबर होता है। इस
प्रदेश को ‘सतत कठिनाइयों का प्रदेश'
कहते हैं। इस प्रदेश के जिस भाग में स्थाई जल
मिलता है या सदावाहिनी नदी बहती है वहीं सिंचित कृषि द्वारा सघन कृषि की जाती है।
आस्ट्रेलिया में पातालतोड़ कुओं से बड़ेबड़े चरागाहों का विकास किया गया है,
अत: यहाँ जल ही जीवन है।
खनिज पदार्थ- इन प्रदेशों में खनिजों का अभाव पाया जाता है
फिर भी कई स्थानों पर सोना, चांदी, ताँबा, शोरा और सुहागा प्राप्त होता है। पश्चिमी आस्ट्रेलिया में सोना, चांदी, बॉक्साइट और ताँबा निकला जाता है। यहाँ की कालगूर्ली एवं कूलगार्डी की सोने की
खाने विश्व प्रसिद्द हैं। चिली के मरुस्थलीय भाग से ताँबा और सोना निकाला जाता है।
कालाहारी में हीरा और तांबा मिलते हैं। पश्चिमी एशिया एवं मध्य पूर्व के देशों अरब,
इराक, ईरान,कुवैत, कतार, लीविया, अल्जीरिया और
उत्तरी अमरीका के कोलोरेडो में खनिज तेल निकाला जाता है। इस खनिज तेल ने
दक्षिण-पश्चिमी एशिया के देशों के का आर्थिक जीवन विकसित करने में सर्वाधिक योग
दिया है। आज यह विश्व के सबसे धनी देशों में से है।
निवासी- अल्पविकसित सहारा, जलविहीन, खनिज व खनिज तेल
विहीन मरुस्थलीय प्रदेशों के निवासी प्रायः पशुपालक और घुमक्कड़ होते हैं। सहारा
तथा दक्षिण-पश्चिम एशिया के देशों में बददु निवास करते हैं। इन प्रदेशों की विशेष
परिस्थितियों के कारण इनका जीवन घुमक्कड़ बन गया है। भेड़, बकरियाँ, ऊँट तथा घोड़े,
आदि पालते हैं। भोजन तथा उद्यम के लिए ये अपने
परिवार के सदस्यों के साथ भटकते रहते हैं। ये लोग मरुद्यानों के लोगों को घोड़े और
खजूर बेचकर उसके बदले में गेहूँ, , शक्कर, वस्त्र तथा तम्बाकू, आदि वस्तुएँ लेते हैं।
4. उष्ण घास के मैदान अथवा सूडान अथवा सवाना तुल्य
जलवायु प्रदेश
स्थिति और विस्तार- यह प्रदेश भूमध्यरेखीय प्रदेश के दोनों
ओर 5° से 20° अक्षांशों के मध्य फैले हैं। इस जलवायु प्रदेश
के एक ओर (पूर्व में) मानसूनी प्रदेश और पश्चिम के उष्ण मरुस्थलीय प्रदेश हैं। यह
क्षेत्र प्रायः महाद्वीपों के मध्य भाग में पाए जाते हैं। सवाना प्रदेश का विस्तार
अफ्रीका महाद्वीप के सूडान राज्य में विशेष रूप से पाया जाता है। इस कारण इन्हें
सूडान तुल्य प्रदेश भी कहते हैं।
दक्षिण अमरीका में ये प्रदेश मुख्यतः के मैदानी प्रदेश
जिन्हें कम्पोज कहा जाता है, बोलिविया,
पराग्वे, ग्रानचाको नदी की घाटी तथा वेनेजुएला के मैदान, उत्तरी कोलंबिया में लानोस सवाना के नाम से
जाना जाता है।
मध्य अमरीका में ये प्रदेश दक्षिणी एवं पश्चिमी तटों के
किनारों के भागों में फैले हुए हैं। यूकाटन प्रायद्वीप का अधिकांश भाग क्यूबा और
पश्चिमी द्वीप समूह के पश्चिमी द्वीप एवं पश्चिमी मेक्सिको इस प्रकार की जलवायु
प्रदेश के अन्तर्गत आते हैं।
अफ्रीका में ये प्रदेश अर्द्धचन्द्राकार रूप में विषुवत
रेखीय भाग के उत्तर में सेनेगल, माली, मध्य अफ्रीका गणतन्त्र नाइजर, सूडान के अधिकांश भाग, घाना, दहोमी, टोगो, आइवरी कोस्ट, नाइजीरिया के कुछ
भागों में फैले हैं। विषुवत् रेखा के दक्षिण में अंगोला के उत्तरी एवं पूर्वी भाग,
जायरे के दक्षिणी किनारे, न्यासालैण्ड, जाम्बिया, तंजानिया,
कीनिया, इथियोपिया और मैडागास्कर द्वीप का पश्चिमी भाग भी इस प्रदेश
में सम्मिलित हैं।
जलवायु- इन प्रदेशों में सूर्य दो बार चमकता है। एक बार जब
वह अयन रेखाओं की ओर जाता है और दूसरी बार जब वह विषुवत् रेखा की ओर लौटता है। अत:
यहाँ दो स्पष्ट ऋतुएँ होती हैं। इस प्रदेश
में गर्मी अधिक पड़ती है। विषुवत् रेखा के उत्तर वाले क्षेत्र में अप्रैल से
अक्टूबर तथा दक्षिण वाले क्षेत्रों में अक्टूबर से अप्रैल तक अधिक गर्मी पड़ती है।
तापमान- ग्रीष्म में औसत तापमान 20° सेण्टीग्रेड से 32° सेण्टीग्रेड तक पाया जाता है। शीतकाल का औसत तापमान 21° सेण्टीग्रेड के लगभग रहता है, यहाँ किसी भी महीने का तापमान 20° सेण्टीग्रेड से कम नहीं रहता है। वार्षिक औसत तापमान 25° सेण्टीग्रेड और वार्षिक ताप परिसर 5° सेण्टीग्रेड से 10° सेण्टीग्रेड के बीच रहता है।
वर्षा- इस प्रदेश में वर्षा केवल ग्रीष्म में होती है,
किन्तु वर्षा का वितरण असमान है। भूमध्यरेखीय
क्षेत्रों के निकट के भागों में वर्षा का औसत 200 सेमी होता है, किन्तु मरुस्थलीय भागों के निकट के क्षेत्रों में यह मात्र 25 सेमी से 40 सेमी ही रहता है। वार्षिक वर्षा का औसत 50 सेण्टीमीटर से 100 सेण्टीमीटर तक रहता है। शीतकाल में इस प्रदेश में शुष्क
सन्मार्गी पवनों के क्षेत्र में रहने के कारण यहाँ ऋतु शुष्क रहती है। वर्षा
निश्चित न होने के कारण कभी-कभी अकाल पड़ जाता है।
प्राकृतिक वनस्पति- इस प्रदेश की जलवायु की विशेषता के कारण
यहाँ की मुख्य वनस्पति घास है। ग्रीष्म में भीषण गर्मी के कारण वर्षा का अधिकांश
जल भाप बनकर उड़ जाता है। इस कारण यहाँ एवं ताड़ के हैं। यहाँ पैदा होने वाली 1¼
से 3 मीटर तक लम्बी होती है। वर्षों के आरम्भ होते ही घास बड़ी तीव्रता से बढ़ने
लगती है, परन्तु ग्रीष्म में यह
घास भीषण ताप से झुलस जाती है और सारा क्षेत्र भूरा-भूरा हो जाता है। जिन भागों
में वर्षा अधिक होती है वहाँ वृक्षों की संख्या बढ़ जाती है, अतः भूमध्य रेखा की ओर वृक्षों की संख्या अधिक
होती जाती है।
घास के मैदानों को भिन्न-भिन्न स्थानों पर कई स्थानीय नामों
से पुकारा जाता है, जैसे-अफ्रीका में
उत्तर की ओर सवाना, दक्षिण में
पार्कलैण्ड, पूर्वी पठार पर
सूडान, वेनेजुएला में लानोज और
ब्राजील में मैटोग्रासो, गोयज और कम्पोज।
निवासी- यहाँ के मूल निवासी हब्शी (पिग्मी) हैं जो कद में
छोटे होते हैं। इनका शरीर हृष्ट-पुष्ट होता है। ये स्याही जैसे काले रंग के होते
हैं। इनके होंठ मोटे और नाके चपटी होती है। बाल धुंधराले और ऊँन जैसे मोटे होते
हैं। ये बड़े ही आलसी किन्तु सहनशील होते हैं। उत्तरी अफ्रीका में अनेक गोरे लोगों
के साथ विवाह होने से हब्शियों की जो मिश्रित जाति पैदा हुई है, उसे ‘बण्टू' कहते हैं। इसी भाँति
दक्षिण अमरीका के मूल रेट इण्डियन एवं दक्षिणी यूरोपवासियों के मिश्रण से जो जाति
पैदा हुई है उसे ‘मेस्टिजो’
कहते हैं।
आर्थिक विकास- आर्थिक विकास की दृष्टि से इस प्रदेश के देश
अर्द्धविकसित अवस्था में हैं। यहाँ के निवासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि एवं
पशुपालन है। अब घुमन्तु पशुपालन एवं शिकार इतिहास की बात बनते जा रहे हैं। जिन
भागों में वर्षा अच्छी होती है अथवा बांध बनाकर या नहरें बनाकर सिंचित कृषि का
विकास किया गया है, जैसे- सूडान,
जाम्बिया, पूर्वी अफ्रीका, ब्राजील, ओरनिको नदी की
घाटी, आदि में कपास, गेहूँ, कहवा, ज्वार, बाजरा, चावल, गन्ना, मूंगफली और मक्का की खेती बड़े पैमाने पर की
जाती है।
इस प्रदेश में खनिज पदार्थों का अभाव पाया जाता है। जायरे
एवं पूर्वी अफ्रीका में कुछ खनिज पाए जाते हैं- सोना, कोयला, तांबा, क्रोमियम तथा लौह-अयस्क, वेनेजुएला में खनिज तेल निकाला जाता है। नाइजीरिया में टिन,
कोयला व खनिज तेल निकाला जाता है। यहाँ परिवहन
के साधनों का सीमित विकास के कारण औद्योगीकरण कम हुआ है। अब कहीं-कहीं औद्योगिक
क्षेत्र विकसित होने लगे हैं।
5. भूमध्यसागरीय जलवायु प्रदेश
स्थिति और विस्तार- ये जलवायु प्रदेश महाद्वीपों के पश्चिमी
भागों में 30° से 45° अक्षांशों के मध्य उत्तरी तथा दक्षिणी
गोलाद्धों में पाए जाते हैं। इस जलवायु प्रदेश का विस्तार भूमध्य सागर के चारों ओर
सबसे अधिक पाया जाता है, इसलिए इसे
भूमध्यसागरीय जलवायु प्रदेश कहते हैं। इस जलवायु के अन्तर्गत-
यूरोप में भूमध्य सागर के तटवर्ती देशोंदक्षिणी और पूर्वी
स्पेन, दक्षिणी, फ्रांस, इटली, यूनान, यूगोस्लाविया और अल्वानिया में इस प्रकार की
जलवायु पायी जाती है।
एशिया में पश्चिमी सीरिया, लेबनान, इजरायल एवं टर्की
का तट
उत्तरी अफ्रीका का एटलस पर्वतीय प्रदेश, मोरक्को, उत्तरी अल्जीरिया और टयूनीशिया; द. अफ्रीका का केप प्रान्त
उत्तरी अमरीका में कैलीफोर्निया की मध्यवर्ती घाटी
दक्षिणी अमरीका के मध्य चिली
दक्षिण-पश्चिमी तथा दक्षिण-पूर्वी आस्ट्रेलिया
जलवायु- इन प्रदेशों में ग्रीष्म काफी लम्वी और गर्म होती
है। शीतमें वर्षा होती है।
तापमान- ग्रीष्म ऋतु का औसत तापमान 17° सेण्टीग्रेड से 26° सेण्टीग्रेड के बीच रहता है। इस ऋतु में आकाश सदा साफ रहता
है और वर्षा नहीं होती है। शीत में साधारण सर्दी पड़ती है। शीतकाल का औसत तापमान 5° से 10° सेण्टीग्रेड के बीच रहता है। वार्षिक ताप परिसर सेण्टीग्रेड से 15° सेण्टीग्रेड तक रहता है।
वर्षा- यहाँ वर्षा केवल शीतकाल में ही होती है। वायुदाब की पेटियों
के खिसकने से शीतकाल में यह प्रदेश पछुआ पवनों के मार्ग में आ जाते हैं, फलतः इस में खूब वर्षा होती है। ग्रीष्म में यह
शुष्क सन्मार्गी पवनों के प्रभाव में रहते हैं, अतः इस ऋतु में वर्षा नहीं होती है। शुष्क भागों में वर्षा
का औसत 40 से 50 सेंटीमीटर और तर भागों में 75 से 100 सेण्टीमीटर रहता है। वर्षा प्राय: अनिश्चित और रुक-रु कर होती है।
जलवायु- यहाँ की
जलवायु मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं-
अधिकांश वर्षा शीतकाल में होती है, किन्तु इसकी मात्रा अधिक नहीं होती जबकि ग्रीष्मप्रायः
शुष्क रहती है।
शीतकाल में धूप तेज और चमकीली होती है जिससे फलों के पकने
में सहायता मिलती है।
विशेष स्थानों में यहाँ की स्थानीय गरण और शुष्क पवनें
वनस्पति को झुलसा से देती हैं। ऐसी पवनों को अल्जीरिया में सिरोको, स्पेन में लैबिची, मिस्र में खमसिन, कैलिफोर्निया में सांता एनास और नार्दस कहते हैं। दक्षिणी फ्रांस में मिस्ट्रल
तथा बाल्कन देशों में बोरो कहते हैं।
प्राकृतिक वनस्पति- यहाँ मुख्य रूप से कम लम्बे सदाबहार
वृक्ष तथा झाड़ियाँ मिलती हैं। यहाँ ऐसे पेड़-पौधे उगते हैं जो लम्बी और शुष्क
ग्रीष्मको सह सकें। इस हेतु यहाँ के पेड़पौधों में कई विशेषताएँ होती हैं, जैसे कुछ वृक्षों की जड़ें लम्बी अथवा गांठदार
होती हैं, जिससे भूमि से अधिक गहराई से जल खींच सकें कुछ वृक्षों की
छाल चिकनी और मोटी होती है, जैसे कुर्क,
जैतून, शहतूत, , आदि। कुछ वृक्षों
की पत्तियां मोटी, चिकनी और
रोयेंदार होती हैं, जिससेवाष्पीकरण
द्वारा उनकी नमी नष्ट न होने पाए। इसमें नींबू, सन्तरा, अंगूर, सेव, अंजीर और जैतून मुख्य हैं। यहाँ के मुख्य वृक्ष नीबू, नारंगी, अंजीर जैसे रसदार
फल, अंगूर, सेव, सूखे मेवे, जैतून, , शहतूत हैं। ऊँचे पर्वतीय भागों में कोमल लकड़ी
के वन पाए जाते हैं जिनमें पाइन, फर, सीडर, लारेल, साइप्रस और जूनीफर के
वृक्ष मिलते हैं। आस्ट्रेलिया में यूकेलिप्ट्स, कोरी तथा जरी के वृक्ष विशेष रूप से मिलते हैं।
कैलीफोर्निया में रेड-वुड पाया जाता है। इसके अतिरिक्त इन भागों में मैक्विम,
चैपरेल, कैक्टस, इत्यादि छोटे
पौधे और झाड़ियाँ भी यत्र-तत्र पैदा होती हैं
आर्थिक विकास-
कृषि एवं पशुपालन- आर्थिक विकास की दृष्टि से इस प्रदेश के
देश काफी विकसित हैं। यहाँ के निवासी अनेक प्रकार के व्यवसाय में लगे हुए हैं,
किन्तु खेती करना, फल पैदा करना, फलों पर आधारित उद्यम, फलों की शराब,
पशुपालन, आदि यहाँ का मुख्य व्यवसाय है। यहाँ कई प्रकार की फसलें
बोयी जाती हैं जिनमें तम्बाकू, मक्का, , चावल, गेहूँ, की उपज अधिक महत्वपूर्ण
है। ये सभी उपजें शीतकाल में बोयी जाती हैं। जिन भागों में वर्षा अच्छी होती है
तथा सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं वहाँ चावल, फल, मेवे भी पैदा किए जाते
हैं। उत्तरी इटली और स्पेन चावल की कृषि के लिए प्रसिद्ध हैं। मोरक्को, अल्जीरिया और उत्तरी अफ्रीका के देशों में ,
अंगूर और जैतून पैदा किया जाता है।
कैलीफोर्निया की घाटी में फल, मेवे, अंगूर, सब्जियाँ, कपास उत्पन्न की
जाती है। आस्ट्रेलिया में अंगूर और गेहूँ उत्पन्न किया जाता है। सम्पूर्ण प्रदेश
विश्व में शीतोष्ण रसदार फलों के लिए विख्यात है। भेड़ें एवं दुधारू पशु भी पाले
जाते हैं, अतः इन्हें परिश्रम के
प्रदेश भी कहा जाता है।
खनिज व उद्योग- खनिज सम्पति में ये देश धनी हैं। भूमध्यसागर
के निकट के देशों में स्पेन में लौहअयस्क, पारा, ताँबा, जस्ता और रॉगा निकाला जाता है। इटली में गन्धक
और संगमरमर निकाला जाता है। चिली में कोयला और तांबा, कैलीफोर्निया में खनिज तेल और सोना, अफ्रीका के उत्तरी भाग में खनिज तेल और केप प्रान्त में
सोना और फास्फोरस निकाला जाता है। संयुक्त राज्य अमरीका यूरोप में औद्योगीकरण जन्य
व्यवसायों का उच्च स्तर पर विकास हुआ। शेष विश्व में यह अल्पविकसित है।
भूमध्यसागरीय देश विश्व में सैलानियों के केन्द्र हैं। इटली व यूनान प्राचीन
सभ्यता के केन्द्र होने से सैलानियों के स्वर्ग माने जाते हैं।
निवासी- यहाँ के निवासी प्राचीनकाल से ही बड़े सभ्य रहे हैं,
अत: इन प्रदेशों एवं नील घाटी व मेसापोटामिया
को मानव सभ्यता के उदय एवं विकास का प्राथमिक स्थल माना जाता है।
6. शीतोष्ण मरुस्थलीय या ईरान तुल्य जलवायु प्रदेश
स्थिति और विस्तार- ये जलवायु प्रदेश महाद्वीपों के आन्तरिक
भागों में स्थित हैं। ये प्रदेश दोनों गोलाद्धों में 30° से 40° अक्षांशों के
मध्य स्थित हैं। यद्यपि इन अक्षांशों के अतिरिक्त कहींकहीं ये प्रदेश उष्ण कटिबन्ध
की ओर भी चले गए हैं। इस प्रकार की जलवायु के प्रदेश विशेषतः पश्चिम में
भूमध्यसागरीय प्रदेश और पूर्व में चीन तुल्य प्रदेश के मध्य स्थित हैं। इस प्रदेश
में-
दक्षिण-पश्चिमी एशिया का रूसी तुर्किस्तान और ईरान, मध्य एशिया का तारीम बेसिन तथा गोबी मरुस्थल,
ईरान अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और चीन के सिक्यांग प्रदेश
उत्तरी अमरीका में संयुक्त राज्य अमरीका का ग्रेट बेसिन और
मैक्सिको का उत्तरी पठार
दक्षिणी अफ्रीका का वेल्ड प्रदेश
आस्ट्रेलिया में न्यू साउथवेल्स के पूर्वी पठार के पश्चिमी
भाग दक्षिणी अमरीका में बोलीविया का पठार और पैटोगोनिया का उत्तरी भाग
जलवायु- ये सब प्रदेश उन पठारों पर स्थित हैं जो पर्वत
श्रृंखलाओं से घिरे हैं और सागर से दूर हैं। इनमें तापमान का अन्तर अधिक और वर्षा
अत्यन्त कम होती है। शीतकाल में अधिक वायुदाब के विस्तृत क्षेत्र का निर्माण करते
हैं और ग्रीष्म ऋतु में अन्तर्देशीय प्रदेशों में न्यून वायुदाब के क्षेत्र वन
जाते हैं। इसलिए जो भी थोड़ी बहुत वर्षा होती है वह अधिकांशतः ग्रीष्मकाल में ही
होती है। केवल उन ईरान तुल्य प्रदेशों को छोड़कर जो भूमध्यसागरीय प्रदेशों की सीमा
पर स्थित हैं, जहाँ शीतकालीन
चक्रवातों द्वारा वर्षा होती है। इस जलवायु की मुख्य विशेषता ग्रीष्म में कड़ी
गर्मी तथा कम वर्षा का होना है।
तापमान- इन प्रदेशों की ऊँचाई अधिक होने के कारण वायु इतनी
कम होती है कि दिन में सूर्य की प्रखर किरणों के कारण कुछ स्थानों में धरातल का
तापमान 38° सेण्टीग्रेड से भी अधिक
रहता है, किन्तु रात्रि में गर्मी
का इतनी शीघ्रता से विसर्जन होता है कि तापमान हिमांक बिन्दु से भी नीचे पहुंच
जाता है। ग्रीष्म में तापमान 24° सेण्टीग्रेड से 39° सेण्टीग्रेड तक रहता है। दैनिक ताप परिसर भी
बहुत रहता है। दैनिक और वार्षिक ताप परिसर 16° सेण्टीग्रेड से भी अधिक रहता है।
वर्षा- इन प्रदेशों में वर्षा बहुत ही कम होती है। शीतकाल
में हिमपात होता है, जो भी वर्षा होती
है ग्रीष्म में होती है। वार्षिक वर्षा का औसत 15 से 30 सेण्टीमीटर तक
रहता है।
प्राकृतिक वनस्पति- इन प्रदेशों में घास एवं कंटीली
झाड़ियों के अतिरिक्त और कोई वनस्पति पैदा नहीं उगती है। वर्षा की कमी के कारण
बड़े वृक्ष भी नहीं पनपते, केवल कंटीली
झाड़ियाँ ही अधिक उगती हैं। एशिया माइनर और तारीम के बेसिन पर यह अधिक पायी जाती
है। मैदानी भागों में छोटी घासें उगती हैं। ईरान के पठार के उत्तरी भाग, मैक्सिको का पठार तथा उच्च वेल्ड के प्रदेशों
में कुछ अधिक वर्षा के कारण कैस्पियन सागर के तटवर्ती पहाड़ी ढालों पर एवं अन्यत्र
खुले वन भी पाए जाते हैं।
आर्थिक विकास
पशुपालन- इन प्रदेशों में पशुचारण एवं कृषि मुख्य व्यवसाय
हैं। मेसेटा पठार के स्पेनवासी, एटलस के बर्वर
तथा एशिया के बलूची, अफगान, फारसी और कुर्द सभी अब विकास के साथसाथ स्थायी
एवं व्यावसायिक पशुपालन भी करने लगे हैं। मेरिनो भेड़ तथा बकरियों की ऊन तथा बाल,
खालें, चौपायों एवं सूअर का मांस यहाँ के निर्यात की मुख्य वस्तुएँ हैं। अव डेयरी
उत्पाद भी महत्वपूर्ण बनते जा रहे हैं।
कृषि- इन प्रदेशों में बड़े-बड़े बांध बनाकर जैसे मध्य
एरीजोना में साल्टरिवर परियोजना के अन्तर्गत रूजवेल्ट बांध से सिंचाई की जाकर ,
गेहूँ, नारंगी, नाशपाती, अंगूर, कपास, मक्का, अनन्नास, तम्बाकू, गन्ना, चावल, आदि उत्पन्न किए जाते हैं। मरेडलिंग बेसिन में सिंचाई की सहायता से गेहूँ
उत्पन्न किया जाता जाती हैं।
खनिज- इन प्रदेशों में अनेक प्रकार के खनिज सीमित मात्रा
में निकाले जाते हैं। ईरान में खनिज तेल, ताँबा, दक्षिणी अफ्रीका में हीरा,
सोना, कोयला, लोहा, तांबा, सीसा, आदि निकाले जाते हैं।
बोलीविया के पठारी भाग से टिन, चाँदी और ताँबा
निकाला जाता है।
7. तूरान तुल्य अथवा स्टैपी जलवायु प्रदेश
स्थिति और विस्तार- इस जलवायु प्रदेश के अधिकांश क्षेत्र
दोनों गोलाद्धों में 30° से 45° अक्षांशों के मध्य महाद्वीपों के मध्यवर्ती
भागों में स्थित हैं। ये प्राय: नीचे मैदानी भाग हैं। इनका सबसे अधिक विस्तार
एशिया में कैस्पियन सागर से लेकर एशिया के मध्यवर्ती पर्वतीय भागों तक जो (रूसी
तुर्किस्तान की सीमा बनाते हैं) पाया जाता है।
इस जलवायु प्रदेश का विस्तार-
दक्षिण-पश्चिमी साइबेरिया, कैस्पियन सागर के पूर्वी भाग में तूरान प्रदेश तथा यूरोपियन
रूस का दक्षिण-पूर्वी भाग, डेन्यूब की घाटी
उत्तरी अमरीका में सियरा नेवादा तथा उत्तरी मैक्सिको
दक्षिणी अमरीका में लाप्लाटा का बेसिन
आस्ट्रेलिया में मरेडालिंग बेसिन का पूर्वी भाग
जलवायु
महाद्वीपों के भीतरी मध्य भाग में स्थित होने से इन
प्रदेशों की जलवायु अत्यन्त विषम है। यहाँ की जलवायु महाद्वीपीय प्रकार की है,
जहाँ ग्रीष्म ऋतु अधिक गर्म और शीत ऋतु अत्यधिक
ठण्डी होती है।
तापक्रम- ग्रीष्ममें यहाँ बहुत तेज गर्मी पड़ती है। यद्यपि
सभी भागों में तापमान की भिन्नता पायी जाती है, ग्रीष्मकाल का औसत तापमान उत्तर की ओर 15.6° सेण्टीग्रेड से विषुवत् रेखा की ओर 26.7° सेण्टीग्रेड पाया जाता है। इस भाग में अधिकांश
क्षेत्र में अधिकतम तापमान 37.8° सेण्टीग्रेड
पाया जाता है। शीत-ऋतु में तापमानों में और अधिक भिन्नता पायी जाती है। जनवरी का
औसत तापमान ध्रुवों की ओर -11° सेण्टीग्रेड से
-8.9° सेण्टीग्रेड तक पाया
जाता है। उत्तरी मैदानी भागों में -38° सेण्टीग्रेड तापमान तक रिकार्ड किया गया है। अफ्रीका तथा आस्ट्रेलिया में
अधिकतम शीत के महीने का तापमान 10° सेण्टीग्रेड
पाया जाता है। दिन गर्म तथा राते ठण्डी होती हैं अत: दैनिक तापान्तर भी अधिक पाया
जाता है।
वर्षा- यहाँ की वर्षा की विशेषताओं में कम वर्षा, अनिश्चितता और अविश्वसनीयता सभी क्षेत्रों में
पायी जाती है। वर्षा 25 सेण्टीमीटर के
लगभग होती है। वर्षा प्रायः एकदम मूसलाधार होती है जो संवाहनिक प्रकार की होती है।
प्राकृतिक वनस्पति- ग्रीष्म ऋतु में तापमान की अधिकता और
शीत ऋतु में तापमान की न्यूनता के और वर्षा की कमी के कारण इन प्रदेशों में
वृक्षों का सामान्यतः आभाव पाया जाता है। तहां की जलवायु घास के लिए अधिक उपयुक है,
अतः यहाँ सर्वत्र घास के मैदान पाए जाते हैं।
यह घास, मोटी, कठोर, छोटी और गुच्छेदार अधिक वर्षा वाले भागों और नदियों की घाटियों में एल्डर,
विलो, पोपलर, आदि के वृक्ष पाए जाते
हैं। एशिया महाद्वीप में स्टैपी तो सर्वथा वृक्ष शून्य क्षेत्र है। भिन्न-भिन्न
क्षेत्रों में इन शीतोष्ण घास के मैदानों को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है।
एशिया में स्टेपी, उत्तरी अमरीका
में प्रेयरी, दक्षिणी अमरीका
में पेम्पास, दक्षिणी अफ्रीका
में वेल्ड्स और आस्ट्रेलिया में डाउन्स कहते हैं।
आर्थिक विकास
पशुपालन- वर्षा की कमी तथा जलवायु की विषमता के कारण यहाँ
पर सीमित कृषि, भेड़, बकरी एवं चौपायों का पालन अधिक किया जाता है।
पशुपालन एशिया में स्टेपी प्रदेश का मुख्य व्यवसाय है।
कृषि- रूस के स्टेपी प्रदेशों रूसी तुर्किस्तान में
अद्धोष्ण व शीतोष्ण कृषि फसलें व स्थायी चरागाह का विकास एवं बड़े बांध बनाकर
सिंचित कृषि का तेजी से विकास किया गया है। वर्तमान में रूस के ये प्रदेश विश्व के
प्रमुख गेहूं, कपास, दूध, मक्खन, पनीर, मांस, अन्न, , चमड़ा और अण्डे उत्पादन करने वाले भाग हैं। रूस व
आस्ट्रेलिया प्रधान गेहूं व पशु उत्पादों के प्रदेश हैं।
खनिज एवं उद्योग- सोवियत संघ में कैस्पियन सागर के तट पर
खनिज तेल निकाला जाता है। उत्तरी स्टेपी प्रदेश में भी खनिज तेल निकाला जाता है।
आस्ट्रेलिया में खनिज तेल, बॉक्साइट,
सोना और निकाला जाता है। यहाँ पर 1950 के पश्चात् अनेक प्रकार उपभोक्ता उद्योगों का
एवं अब इन्जीनियरी उद्योगों का सभी क्षेत्रों में विकास होता जा रहा है।
निवासी- एशिया महाद्वीप में स्टैपी प्रदेश के भागों के
निवासी किरगिज, कालमुख और कज्जाक
हैं जो कि अब तक अल्पविकसित एवं घुमक्कड़ जातियाँ रही हैं। अब विकसित व होने से
अनेक स्थायी उद्यमों में लगी हैं। पर फिर भी प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों का
प्रभाव इनके दैनिक जीवन पर स्पष्ट दिखायी देता है। कम वर्षा के कारण यहाँ केवल घास
ही उग पाती है, अतः घोड़े,
गाय, भेड़, बकरियाँ पाली जाती हैं।
सम्पूर्ण प्रदेश में अब नहरों एवं नलकूपों द्वारा पर्याप्त सिंचाई व्यवस्था विकसित
की गयी है, अतः कृषि एवं स्थायी
पशुपालन से खिरगीज, कज्जाक, तुर्कमन, अजरबैजान एवं अन्य रूसी गणराज्यों के निवासियों का जीवन
स्तर उच्च तथा आधुनिक हो रहा है।
8. चीन तुल्य जलवायु प्रदेश
स्थिति तथा विस्तार- ये जलवायु प्रदेश उत्तरी तया दक्षिणी
गोलाद्धों में 30° से अक्षांशों के
मध्य, महाद्वीपों के पूर्वी
तटवर्ती भागों में पाए जाते हैं। इस जलवायु प्रदेश का सबसे बड़ा और विस्तृत भाग
महाद्वीप एशिया में है, जहाँ यह कर्क
रेखा और यॉगटिसीक्याँग नदी की घाटी के उत्तर में स्थित मध्यवर्ती पर्वतों के बीच
लगभग समस्त मुख्य चीन में फैला होने के कारण इसे चीन तुल्य जलवायु कहते हैं।
मानसूनी लक्षण होने से इन्हें शीतोष्ण मानसूनी जलवायु प्रदेश भी कहते हैं।
इस प्रदेश के अन्तर्गत निम्न देशों के भू-भाग सम्मिलित किए
जाते हैं-
एशिया में चीन, दक्षिण कोरिया, जापान के क्यूशू
और शिकोकू द्वीप तथा मध्य दक्षिणी होंशू
उत्तरी अमरीका में संयुक्त राज्य अमरीका का दक्षिण-पूर्वी
भाग है
दक्षिणी अमरीका में पराना नदी के मध्यवर्ती भाग व
उत्तर-पूर्वी अर्जेन्टीना
अफ्रीका में यह प्रदेश दक्षिण अफ्रीका गणराज्य में पूर्वी
किनारे पर
आस्ट्रेलिया में दक्षिण-पूर्वी तटीय क्षेत्रों में
ब्रिस्बेन से दक्षिण की ओर न्यू साउथवेल्स तक फैला है।
जलवायु- इस प्रदेश की जलवायु भूमध्यसागरीय प्रदेश की जलवायु
के विपरीत मानसूनी जलवायु शीतोष्ण पायी जाती है। यहाँ ग्रीष्म ऋतु में मानसूनी
पवनों से वर्षा होती है, वर्षा की मात्रा
अधिक होती है, परन्तु शीत ऋतु
उष्ण मानसूनी प्रदेशों की तुलना में अधिक ठण्डी होती है। तापमान- ग्रीष्म ऋतु में
तापमान 26° सेण्टीग्रेड के लगभग
रहता है, किन्तु शीत ऋतु में
कड़ाके की ठण्ड पड़ती है। शीत ऋतु में तापमान 5° सेण्टीग्रेड तक रहता है कहीं-कहीं तो तापमान हिमांक बिन्दु
से नीचे पहुंच जाता है। उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा उष्णता दक्षिणी गोलार्द्ध में
कम रहती है, क्योंकि वहाँ
सागरीय प्रभाव अधिक रहता है। यहाँ ताप परिसर 10° सेण्टीग्रेड से 20° सेण्टीग्रेड के बीच रहता है।
वर्षा- इन प्रदेशों में वर्षा का वार्षिक औसत 50 सेण्टीमीटर से 125 सेण्टीमीटर तक रहता है। यहाँ वर्षा यद्यपि वर्ष-पर्यन्त
होती है, किन्तु अधिकांश वर्षा
ग्रीष्म ऋतु में होती है। चीन को छोड़कर प्रायः सभी क्षेत्रों में सन्मार्गी पवनों
द्वारा ग्रीष्म काल में वर्षा होती है। चीन में भी यह वर्षा मानसूनी पवनों द्वारा
ही होती है, किन्तु कुछ वर्षा
चक्रवातों द्वारा शीतकाल में भी होती है।
प्राकृतिक वनस्पति- इस प्रदेश में ग्रीष्म में पर्याप्त
वर्षा होने के कारण वनस्पतियाँ प्रचुर मात्रा में पायी जाती हैं। यहाँ पर
अधिकांशतः चौड़ी पत्ती वाले वन मिलते हैं। इन वनों के वृक्ष शीतकाल में अपने पते
गिराकर शीत से अपनी रक्षा करते हैं। ये वृक्ष बड़े उपयोगी होते हैं। मुख्य वृक्ष
ओक, कपूर, लारेन्स, मेपलं मेग्लोनिया, बीच, वालटन आदि के भी पाए जाते
हैं। इनके अतिरिक्त शहतूत, सिनकोना, बांस, तुग, ताड़, सीडर आदि के वृक्ष पाए जाते हैं। ऊँचे पर्वतीय
भागों में नुकीली वाले कोमल लकड़ी के वृक्ष भी पाए जाते हैं। आस्ट्रेलिया में
यूकेलिप्ट्स के वृक्ष अधिक पाए जाते हैं।
आर्थिक विकास
कृषि- यहाँ की भूमि और जलवायु कृषि के अनुकूल होने से
प्रायः सभी भागों में सघन अथवा व्यापारिक कृषि का पर्याप्त विकास हुआ है। इस
प्रदेश के विभिन्न भागों में चावल उत्पन्न किया जाता है। चीन विश्व में सबसे अधिक
चाय, रेशम और चावल उत्पन्न
करने वाला देश है। चीन के उत्तरी भाग में गेहूँ, सोयाबीन, सेम, चुकन्दर, शकरकन्द तथा ज्वार-बाजरा पैदा किया जाता है। संयुक्त राज्य
अमरीका एवं अन्य भागों में कपास, चावल, कहवा, गन्ना, तम्बाकू तथा मक्का की
फसलें पैदा होती हैं।
खनिज- कृषि के अतिरिक्त इन प्रदेशों में कई प्रकार के खनिज
पाए जाते हैं। चीन में शांसी, शेन्सी क्षेत्रों
में उत्तम कोयला और हुपेह में लोहा निकाला जाता है। आस्ट्रेलिया में न्यूसाउथवेल्स
और अफ्रीका के नेटाल में उत्तम प्रकार का लोहा कोयला निकाला जाता है। संयुक्त
राज्य में खाड़ी तटीय क्षेत्र में खनिज तेल और गैस अधिक मात्रा में मिलती है,
अतः सभी देशों में उन्नत कृषि एवं उद्योगों का
विविध प्रकार से अच्छा विकास हुआ है।
निवासी- चीन, जापान, कोरिया, पूर्वी एशिया के वे देश हैं जहाँ जनसंख्या का
घनत्व बहुत अधिक है। पश्चिमी देश संयुक्त राज्य अमरीका, दक्षिणी अफ्रीका, पराना बेसिन एवं दक्षिण-पूर्वी आस्ट्रेलिया विकसित राष्ट्र हैं जहाँ अधिकांश
यूरोप से गए लोग निवास करते हैं। दक्षिणी अमरीका के इन देशों में उन्नत कृषि और
खनिज सम्पदा के विकास के साथ-साथ पशुपालन एवं उद्योगों को भी विकसित किया गया है।
9. पश्चिमी यूरोप तुल्य जलवायु प्रदेश
स्थिति और विस्तार- यह प्रदेश महाद्वीपों के पश्चिमी भागों
में 45° से 65° अक्षांशों के मध्य उत्तरी तथा दक्षिणी
गोलाद्धों में पाए जाते हैं। इस जलवायु प्रदेश का सर्वाधिक भाग पश्चिमी यूरोप में
है, अतः इसे पश्चिमी यूरोप
जलवायु प्रदेश कहा जाता है। ये भाग समुद्री जलवायु के प्रभाव में रहते हैं,
अतः इसे पश्चिमी तट तुल्य जलवायु भी कहा जाता
है। इस जलवायु प्रदेश का विस्तार निम्नलिखित क्षेत्रों में है-
इस जलवायु प्रदेश का विस्तार, स्पेन से उत्तरी नार्वे तक पाया जाता है जिसमें ग्रेट ब्रिटेन,
फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैण्ड,
बेल्जियम, डेनमार्क और नार्वे इस प्रदेश के भाग हैं।
उत्तरी अमरीका में प्रशान्त तट के उत्तरी कैलीफोर्निया तथा
वाशिंगटन और कनाडा का तटीय ब्रिटिश कोलम्बिया।
दक्षिण अमरीका में दक्षिणी चिली।
आस्ट्रेलिया में विक्टोरिया प्रान्त तथा निकटवर्ती
न्यूजीलैण्ड।
जलवायु- इन प्रदेशों की जलवायु पर समुद्र की निकटता का अधिक
प्रभाव पड़ता है। इससे इन प्रदेशों का तापमान वर्षभर लगभग समान रहता है।
तापमान- समुद्री प्रभाव से तथा पछुआ हवाओं के उष्ण सागरों
के ऊपर से होकर आने के कारण ग्रीष्म में तापमान अधिक नहीं हो पाता और न शीतकाल ही
अधिक ठण्डा हो पाता है। ग्रीष्म ऋतु में न अधिक गर्मी पड़ती है और न ही शीत ऋतु
में अधिक सर्दी पड़ती है। ग्रीष्म ऋतु में औसत तापमान 15° सेण्टीग्रेड और शीतकाल में 5° सेण्टीग्रेड रहता है। वार्षिक ताप परिसर सेण्टीग्रेड तक
रहता है। ग्रीष्मकाल सुहावना होता है। उच्च अक्षांशों में स्थित होने पर भी यहाँ
तापमान प्रायः हिमांक विन्दु से नीचे नहीं जाता है, क्योंकि इन प्रदेशों के सागरतटों के समीप उष्ण जलधाराएँ
बहती हैं। चक्रवातीय प्रभावों से तापमान में परिवर्तन होता रहता है।
वर्षा- ये प्रदेश निरन्तर पछुआ पवनों के मार्ग में पड़ते
हैं, इसलिए यहाँ साल भर वर्षा
होती है। तीन-चौथाई वर्षा शीतकाल में होती है। वर्षा का वार्षिक औसत 60 से 150 सेण्टीमीटर तक होता है, किन्तु कुछ भागों
में वर्षा 250 सेण्टीमीटर से
भी अधिक हो जाती है। चिली के पर्वतीय भागों में 500 सेण्टीमीटर और नार्वे की पहाड़ियों पर 200 सेण्टीमीटर वर्षा होती है। आन्तरिक भागों में
वर्षा निरन्तर घटती जाती है। वर्षा मुख्यतः पश्चिम से आने वाले चक्रवातों द्वारा
होती है। शीत में चक्रवात अधिक शक्तिशाली होते हैं और इसी मौसम में अधिक वर्षा
होती है। तूफान कम आते हैं, किन्तु बादल
प्रायः वर्षपर्यन्त छाए रहते हैं। गर्म धाराओं के प्रभाव से वायु में नमी तथा
तटवर्ती भागों में कोहरा छाया रहता है।
प्राकृतिक वनस्पति- इन प्रदेशों में समशीतोष्ण कटिबन्धीय
चौड़ी पती वाले पतझड़ वन पाए जाते हैं। इन वृक्षों में ओक, ऐश, ऐस्पिन, बीच, एल्म, मेपल चेस्टनेट और वालनट
मुख्य हैं। ये वृक्ष शीत ऋतु के प्रारम्भ में अपनी रक्षा करते हैं। ऊँचे पर्वतीय
भागों में शंकुल वन पाए जाते हैं। इनमें चीड़, , फर, पाइन, सनोवर, लार्च, स्यूस, सीडर और हेमलॉक मुख्य हैं। यूरोपीय भाग के वनों
को काटकर भूमि को कृषि योग्य बना लिया गया है। अतः वनस्पतियाँ लुप्त प्राय सी हो
गयी हैं।
आर्थिक विकास- उत्तम भौगोलिक स्थिति, स्वास्थ्यप्रद, जलवायु, उपजाऊ मिट्टी और
परिश्रमी निवासियों के इस प्रदेश के देशों ने पर्याप्त प्रगति की है। लोहा तथा
कोयला प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने से उद्योगों का विकास भी अधिक हुआ है। यहाँ
पर कृषि, पशुपालन, उद्योग सभी का विकास नवीनतम तकनीक की सहायता से
उत्तम दशा में सर्वाधिक लाभ को ध्यान में रखकर किया गया है।
कृषि एवं पशुपालन- पश्चिमी यूरोप के देशों में फ्रांस,
जर्मनी, बेल्जियम, नीदरलैण्ड तथा
डेनमार्क में विकसित व सघन कृषि के साथ-साथ पशुपालन का पर्याप्त विकास हुआ है।
डेनमार्क यूरोप में सर्वाधिक दूध, मक्खन और पनीर का
उत्पादन करने वाला देश है। फ्रांस विश्व में सबसे अधिक चुकन्दर व यूरोप से अधिक
गेहूँ उत्पन्न करता है। नीदरलैण्ड अपने उद्यानों व उद्यान कृषि के लिए विश्व
प्रसिद्ध है।
औद्योगिक विकास- जर्मनी सहित ये सभी विश्व की महान औद्योगिक
शक्ति भी माने जाते हैं। यहाँ कई प्रकार के खनिज मिलने से खनिज व कच्चा माल का
आयात करके सबसे उन्नत तकनीक द्वारा सभी अभिनव उद्योगों का, अब साझा बाजार (ECM) बनाकर विशेष तेजी से विकास किया गया है। इनका सम्मिलित
विकास स्तर संयुक्त राज्य अमेरिका अथवा जापान से भी अधिक है।
निवासी- यहाँ के निवासी परिश्रमी हैं, जिन्होंने विश्व के अनेक भागों में जाकर
साम्राज्य स्थापित किए हैं। यूरोपीय जलवायु मानव सभ्यता के विकास के लिए उत्तम मानी
जाती है। वर्षपर्यन्त कार्य कर सकने से यहाँ उत्पादन अधिक होता है। इस प्रदेश के
देश विश्व के सबसे अधिक विकसित राष्ट्र हैं।
10. प्रेयरी तुल्य जलवायु प्रदेश
स्थिति और विस्तार- यह जलवायु प्रदेश विश्व की उत्तम जलवायु
प्रदेशों में से एक माना जाता है। इस प्रकार की जलवायु का विस्तार 45° से उत्तरी अक्षांशों के मध्य प्रायः आन्तरिक
भागों में है।
संयुक्त राज्य अमरीका में इसके अन्तर्गत मध्य कन्सास और
नैब्रास्का से अन्धमहासागर के तट तक तथा न्यू इंग्लैण्ड से मेरीलैण्ड तक के प्रदेश
सम्मिलित हैं।
यूरोप में इस जलवायु प्रदेश के अन्तर्गत मध्य यूरोप के
मध्यवर्ती भाग, जर्मनी, पोलैण्ड, चैक गणराज्य स्लोवाक, अल्बानिया, हंगरी, रोमानिया एवं पश्चिमी भाग आते हैं।
पूर्वी एशिया में उत्तरी होन्शू, होकेडो एवं मंचूरिया के भाग सम्मिलित किए जाते हैं।
जलवायु - इस प्रदेश में महाद्वीपीय प्रकार (ग्रीष्म अधिक
गर्म तथा शीत अधिक शीतल) की जलवायु पायी जाती है। इस प्रदेश में निरन्तर चक्रवात
और प्रतिचक्रवात पश्चिम से पूर्व की ओर चला करते हैं। चक्रवात और प्रतिचक्रवात के
कारण वायुमण्डल में परिवर्तनशीलता आ जाती है। दक्षिणी और पूर्वी पवनें गर्मी और वर्षा
लाने वाली होती है। यहाँ झंझावात एवं स्वच्छ मौसम बारी-बारी से दो तीन दिनों में
आते रहते हैं।
तापमान- ग्रीष्म में तापमान 10° सेण्टीग्रेड से 21° सेण्टीग्रेड रहते हैं, किन्तु शीतकाल
में तापमान -7° सेण्टीग्रेड तक
गिर जाता है। दक्षिणी सीमान्त भागों की ओर तथा तटवर्ती भागों में तापमान सम रहता
है। समुद्र से ज्योंज्यों महाद्वीपों के भीतरी भागों की ओर बढ़ते हैं, तापमान में विषमता आती जाती है।
वर्षा- यहाँ वर्षा का औसत साधारण है सागर तट से दूर जाने पर
वर्षा की मात्रा में और कमी हो जाती है। संयुक्त राज्य अमरीका के पश्चिमी तटीय
भागों से दूर तथा 100° पश्चिमी
देशान्तर के निकट केवल 40 से 70 सेण्टीमीटर ही वर्षा होती है। अधिकांश वर्षा
ग्रीष्म ऋतु में होती है। यहाँ वर्षा गर्जना के साथ बौछार के रूप में होती है। इन
प्रदेशों में शीतकाल में हिमपात होता है और वर्षा प्रायः चक्रवातीय होती है।
प्राकृतिक वनस्पति- जिन भागों में वर्षा अधिक होती है,
वहाँ साधारणतः चौड़ी पती वाले बिखरे हुए वृक्ष
पाए जाते हैं, किन्तु जहाँ
वर्षा कम होती है, वहाँ साधारणतः
घास पायी जाती है। कम उपजाऊ भूमि पर कठोर लकड़ी के वृक्ष मैपल, चेस्टनट तथा वालनट पाए जाते हैं। चीड़ के वृक्ष
भी पाए जाते हैं।
मिट्टियाँ- चौड़ी पती वाले भागों में तथा जहाँ वर्षा
साधारणतः होती है वहाँ भूरे रंग की उपजाऊ मिट्टियाँ पायी जाती हैं, जिन्हें प्रेयरी मिट्टियाँकहते हैं।
आर्थिक विकास- कृषि व व्यावसायिक पशुपालन यहाँ के मुख्य
उद्यम हैं। ये प्रदेश अब गेहूं की व्यापारिक कृषि के अन्तर्गत आते हैं। सर्दी अधिक
पड़ने से यहाँ बसन्तकालीन गेहूँ उत्पन्न किया जाता है। अमरीका में इस जलवायु
प्रदेश में गेहूँ और मक्का की उपज प्राप्त की जाती है। संयुक्त राज्य अमरीका की
मक्का मेखला विश्व में प्रसिद्ध है, जहाँ मांस के लिए पशु पाले जाते हैं। सूअर और चौपाए यहाँ मुख्यतः मांस के लिए
पाले जाते हैं। शिकागो विश्व विख्यात मांस की मण्डी है। संयुक्त राज्य में
औद्योगिक विकास भी तेजी से हुआ है।
निवासी- यहाँ के निवासी प्रगतिशील हैं। संयुक्त राज्य
अमरीका और निकटवर्ती कनाडा के भागों में यूरोप से गए लोगों ने इस प्रदेश का
अत्यधिक विकास किया है। एशिया के पूर्वी भाग के क्षेत्रों में मंगोल और मंचू निवास
करते हैं। वह अल्पविकसित प्रदेश है।
11. सेण्ट लॉरेन्स या मंचूरिया तुल्य प्रदेश
स्थिति एवं विस्तार- सेण्ट लॉरेन्स तुल्य प्रदेश उत्तरी एवं
दक्षिणी गोलाद्धों में 35° से 50° अक्षांशों के मध्य महाद्वीपों के पूर्वी भाग
में स्थित हैं। इन प्रदेशों का विस्तार उत्तरी अमरीका महाद्वीप के सेण्ट लॉरेन्स
बेसिन तथा न्यूफाउण्डलैण्ड द्वीप में दक्षिणी अमेरिका में पेन्टागोनिया में तथा
एशिया महाद्वीप के मंचूरिया, सखालिन तथा
हौकेडो द्वीप में है।
जलवायु- सेण्ट लॉरेन्स तुल्य जलवायु प्रदेशों में ग्रीष्म
ऋतु साधारण तथा शीत ऋतु कठोर होती है। ग्रीष्म ऋतु में साधारण गर्मी पड़ती है तथा
इस में औसत तापमान 17° से 22° सेण्टीग्रेड रहता है। शीत ऋतु में कठोर ठण्ड
पड़ती है और तापमान हिमांक बिन्दु से नीचे चला जाता है। शीत ऋतु में प्रायः बर्फ
जम जाती है। वर्षा इन प्रदेशों में सामान्य होती है। वर्षा का वार्षिक औसत 50 से 200 सेमी है। अधिकांश वर्षा ग्रीष्मकाल में होती है। शीत ऋतु में वर्षा बर्फ के
रूप में होती है।
प्राकृतिक वनस्पति- सामान्य वर्षा एवं नमी के कारण इन भागों
में मिश्रित वन मिलते हैं। उच्च पर्वतीय भागों में नुकीली पती वाले कोणधारी वन
मिलते हैं। इन कोणधारी सदाबाहर वनों में मिलने वाले मुख्य वृक्ष फर, हेमलाक, सीडर, स्प्रूस, आदि हैं। मैदानी भागों में चौड़ी पती वाले
पतझड़ वन मिलते हैं। इन पतझड़ वनों के मुख्य वृक्ष बीच, बर्च, लारेन, शहतूत, आदि हैं। निम्न भागों में एवं घाटियों में घास के छोटे-छोटे मैदान हैं। यह घास
छोटी एवं गुच्छेदार होती है।
पशु जीवन- सेण्ट लॉरेन्स तुल्य प्रदेशों में मिलने वाले
मुख्य पशु गाय, भैस, बकरियां, घोड़े, लोमड़ी, हिरन, आदि हैं। पर्वतीय घाटियों में पशुपालन का कार्य होता है। निचले मैदानों तथा
नदियों की तलहटी में गाय तथा बकरियां पाली जाती हैं। इन पशुओं से मांस, दुग्ध तथा चमड़ा प्राप्त होता है।
आर्थिक विकास- सेण्ट लॉरेन्स तुल्य प्रदेशों में उपयुक्त
भौगोलिक दशाओं के कारण विकास अधिक हुआ है। यहां पर कृषि, लकड़ी काटना, मछली पकड़ना, फर निकालना,
कागज बनाना, आदि उद्योग अधिक विकसित हो गए हैं। कृषि के अन्तर्गत गेहूं,
, गन्ना, सोयाबीन, आलू तथा राई की
कृषि अधिक की जाती है। यहां पर अनेक खनिज पदार्थ निकाले जाते हैं जिनमें लोहा,
कोयला, तांबा, टंगस्टन, सुरमा, बॉक्साइट तथा सोना महत्वपूर्ण खनिज हैं।
मानव जीवन- विकसित एवं उन्नतिशील प्रदेश होने के कारण यहां
पर सभ्य मानव जातियां निवास करती हैं। इन प्रदेशों में जनसंख्या भी पर्याप्त है।
केवल पेंटागोनिया में मानव विकास अभी कम हो पाया है।
12. साइबेरिया अथवा टैगा तुल्य जलवायु प्रदेश
स्थिति और विस्तार- ये जलवायु प्रदेश 60° से 70° उत्तरी गोलार्द्ध में तथा 59° से 65° के मध्य दक्षिणी गोलार्द्ध में पाए जाते हैं।
इन प्रदेशों में प्रधानत: यूरेशिया का उत्तरी भाग तथा उत्तरी अमरीका में कनाडा सम्मिलित
है। साइबेरिया में इसका विस्तार सबसे अधिक होने से इस जलवायु को साइबेरिया तुल्य
जलवायु तथा अधिकांश टैगा प्रदेश के शंकुल प्रदेश का भाग होने के कारण इसे टैगा
तुल्य जलवायु प्रदेश भी कहा जाता है।
इस जलवायु का विस्तार निम्नलिखित क्षेत्रों में मिलता है :
यूरेशिया में स्वीडन, यूरोपीय रूस तथा सम्पूर्ण साइबेरिया में इस प्रकार की
जलवायु पायी जाती है। साइबेरिया में यह क्षेत्र 950 से 2,400 किलोमीटर तक
चौड़ा है।
कनाडा के उत्तरी भाग में लारेंशियन शील्ड के अलास्का तक के
क्षेत्र में इस प्रकार की जलवायु पाई जाती है।
जलवायु- ये जलवायु प्रदेश उच्च अक्षांशों और समुद्री प्रभाव
से दूर स्थित हैं। अतः यहाँ की जलवायु विषम है। यहाँ ग्रीष्म ऋतु छोटी और शीतल
होती है, दिन काफी लम्बे होते हैं।
तापमान- ग्रीष्म ऋतु में तापमान 10° सेण्टीग्रेड से 15° सेण्टीग्रेड तक पाए जाते हैं। शीत ऋतु काफी लम्बी और कठोर होती है, दिन छोटे और रातें लम्बी होती हैं। शीतकाल में
तापमान हिमांक विन्दु से नीचा रहता है। कई भागों में यह -20° सेण्टीग्रेड से -40° सेण्टीग्रेड तक पहुँच जाते हैं। विश्व का सबसे ठंडा स्थान
बर्खोयान्स्क इसी प्रदेश में स्थित है। इस स्थान का तापमान जनवरी में न्यूनतम -60° सेण्टीग्रेड रहता है। इस प्रदेश में वार्षिक
ताप परिसर 28° से 60° सेण्टीग्रेड सेण्टीग्रेड रहता है।
वर्षा- यद्यपि यहाँ वर्षा प्रायः वर्ष भर होती है, किन्तु मुख्यतः बसन्त ऋतु तथा ग्रीष्म में अधिक
होती है। वर्षा का औसत 40 सेण्टीमीटर है।
यहाँ मुख्यतः चक्रवातीय वर्षा होती है। शीतकाल में हिमपात होता है।
प्राकृतिक वनस्पति- इन प्रदेशों में कोणधारी सदाबहार वन पाए
जाते हैं। इन वनों को यूरेशिया में ‘टैगा' तथा उत्तरी अमरीका में
शंकुल वन कहते हैं। इन वनों का सर्वाधिक विस्तार यूरेशिया में पाया जाता है। इन
वनों में फर वर्ग के वृक्ष, सीडर, लार्च, स्प्रूस, पाइन, चीड़, आदि वृक्ष पाए जाते हैं। इन वनों के दक्षिणी किनारों पर चौड़ी पत्ती एस्पेन,
मैपल और बीच वृक्ष भी पाए जाते हैं। यही आज
विश्व के सबसे सुरक्षित वन प्रदेश भी हैं।
शीत और हिमपात से अपनी रक्षा करने के लिए इन वृक्षों की
पतियाँ सुई के समान नुकीली एवं नीचे की ओर झुकी हुई होती हैं। ये कोमल लकड़ियों के
वन कहलाते हैं।
आर्थिक विकास- यहाँ जनसंख्या विरल है। यहाँ के निवासियों का
मुख्य व्यवसाय लकड़ी काटना, लुग्दी बनाना,
खनिज, निकिल एवं फर एकत्रित करना और शिकार करना है। नार्वे, स्वीडन, फिनलैण्ड,
साइबेरिया में लकड़ी काटने और चीरने का कार्य
किया जाता है। दियासलाई, गन्दा बिरोजा, तारपीन का तेल,
गोंद, कागज और लुग्दी तैयार की जाती है। अतः अधिकांशतः औद्योगिक कार्य वनों एवं वन्य
जीवों के उत्पादों, वस्तु संग्रह व
खनिज उत्पादन पर आधारित है। कनाडा में ओटावा, फिनलैण्ड में एम्पीयरे और पूर्व सोवियत संघ में आकेंजिल,
इगरका में ऐसे उद्योगों का अधिक विकास हो सका
है।
शिकार के साथसाथ अब समूरदार पशुओं को पालकर भी उनसे फर
एकत्रित किया जाता है।
13. टुण्ड्रा तुल्य जलवायु या ध्रुवीय प्रदेश
स्थिति और विस्तार- ये प्रदेश 66° उत्तरी अक्षांशों से ध्रुवों की ओर उत्तरी अमरीका और
यूरेशिया के सबसे उत्तरी भाग में स्थित हैं। इन प्रदेशों को यूरेशिया में टुण्ड्रा
और उत्तरी अमरीका में उजाड़ खण्ड (Barren land) कहा जाता है। इनकी टैगा से सीमा 10° सेण्टीग्रेड समताप रेखा निश्चित करती है। कुछ लोग इन्हें ‘ध्रुवीय निम्न प्रदेश' अथवा ‘शीत मरुस्थल’
भी कहते हैं।
जलवायु- ध्रुवीय प्रदेश में स्थित होने के कारण यहाँ शीत
ऋतु लम्बी और बड़ी विषम होती है। शीत ऋतु में लगभग\ 4 महीने तक कड़ाके की सर्दी पड़ती है और सारी भूमि हिम से जमी
रहती है। इस ऋतु में या तो सूर्य के दर्शन ही नहीं होते या थोड़ी देर के लिए होता
है। इस ऋतु में प्रायः हिम की आंधियां और हिम झंझावत (Blizzard) चला करते हैं, जिनकी गति 200 किलोमीटर प्रति घंटा होती है।
तापमान- शीत ऋतु में औसत तापमान -19° सेण्टीग्रेड रहता है, परन्तु अनेक स्थानों पर यह तापमान -35° सेण्टीग्रेड से -40° सेण्टीग्रेड तक चला जाता है, इस प्रकार यहाँ शीत ऋतु कठोर होती है तथा बाहरी या खुले ये
सभी कामकाज ठप्प पड़ जाते हैं।
ग्रीष्म ऋतु का औसत तापमान 5° से 10° सेण्टीग्रेड तक
रहता है। इस तापमान के कारण यहाँ पर जमी हिम पिघलने लगती है। यहाँ ताप परिसर अधिक
रहता है।
वर्षा- इस प्रदेश में वर्षा बहुत कम होती है। शीत ऋतु में
चक्रवातों से थोड़ी बहुत वर्षा हिम के रूप में होती है। वर्षा का वार्षिक औसत 15 से 20 सेण्टीमीटर रहता है।
प्राकृतिक वनस्पति- इस प्रदेश में पौधों की वृद्धि का काल
बहुत छोटा होता है, अतः वनस्पति का
अभाव पाया जाता है। छोटी ग्रीष्म ऋतु में पौधे शीघ्र बढ़ जाते हैं। ऐसे समय में
पॉपी, लिली, बटरकप्स, आदि पुष्पों का रंगीन, गलीचा सा बिछा दिखाई देता है जिसके आधार पर टुण्ड्रा की 3 भागों में विभाजित किया जाता है (वनस्पति के
आधार पर)-
झाड़ी वाले टुण्ड्रा- जिसके अन्तर्गत एल्डर, वर्च, विलो के बोने वृक्ष पाए जाते हैं।
घास वाले टुण्ड्रा- जिसके अन्तर्गत लिचेन, मॉस, सेज, आदि घास और फूल वाले पौधे
पैदा होते हैं।
मरुस्थलीय टुण्ड्रा- जिसमें सारा क्षेत्र प्राय:
वनस्पतिविहीन एवं बर्फीला पाया जाता है।
आर्थिक विकास- अब यहाँ उत्तरी अमेरिका एवं साईबेरिया में
सोना, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस, कोयला, आदि के भण्डार भी
मिले हैं। इन सबके विदोहन हेतु एवं लकड़ी चीरना, समूर व चरबी एकत्रित करने जैसे कार्यों में यहाँ के मूलवासियों
को ही विशेष अवसर दिए जाने लगे हैं। इससे यहाँ की अर्थव्यवस्था में सरकारी सहयोग
से विकास में अनुकूलन आने लगा है।
मानव जीवन- इस प्रदेश में जलवायु की विषमता एवं कठोरता,
भूमि में हिम की स्थाई परत और भोजन की कमी के
कारण जनसंख्या का घनत्व एक व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से भी कम मिलता है। यहाँ के
खानाबदोश एवं कम विकसित हैं। एशिया में टुन्ड्रा प्रदेश में लेप्स, फिन्स, याकूत, टूंगस आदि जातियाँ व
उत्तरी अमरीका में एस्किमो और अल्यूत जाति के लोग भी सिर्फ ग्रीष्म काल में ही
रहते हैं। ग्रीष्म में ये लोग यहाँ नदियों तथा सागर में सील, वालरस, आदि मछलियाँ एवं भूमि पर ध्रुवीय भेड़िया, लोमड़ी, भालू, आदि का धैर्य एवं चालाकी से पुराने औजारों एवं
अब आग्नेय अस्रों से शिकार करते हैं। सम्बन्धित सरकारों ने इनके विकास हेतु अनेक
कदम उठाए हैं। इनका सम्पूर्ण जीवनक्रम अब पहले से सुखमय एवं अधिक स्थाई बनता जा
रहा है।
14. हिमाच्छादित प्रदेश
स्थिति विस्तार- इस प्रदेश का विस्तार दोनों गोलाद्धों में
ध्रुवों के चतुर्दिक उच्च धरातलीय भाग तक है, जो सदैव हिमाच्छादित रहता है। इसके अन्तर्गत उत्तरी
गोलार्द्ध में ग्रीनलैण्ड का मध्य एवं उत्तरी भाग, कनाडा के सुदूर उत्तरी द्वीप तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में
सम्पूर्ण एण्टार्कटिक महाद्वीप सम्मिलित हैं। यह प्रदेश विश्व के लगभग 10%
भू-भाग पर विस्तृत है। उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तरी अमरीका का मध्य एवं
उत्तरी ग्रीनलैण्ड, वैफिन द्वीप,
क्वीन एलिजाबेथ द्वीप, ऐलेस मेरे द्वीप, मेलविले द्वीप, पेरी द्वीप,
आदि तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में सम्पूर्ण
एण्टार्कटिक महाद्वीप इस प्रदेश में शामिल हैं।
जलवायु- यह प्रदेश विश्व का सर्वाधिक ठण्डा प्रदेश है,
जहां तापमान सदैव हिमांक से नीचे रहता है।
सामान्यतः ग्रीनलैण्ड के आन्तरिक भाग में औसत वार्षिक तापमान -32°C तथा एण्टार्कटिक महाद्वीप में से के मध्य तथा
उत्तरी अमरीका के द्वीपों में -23°C पाया जाता है। एण्टार्कटिक के आसपास सबसे गर्म महीने का औसत तापमान दिसम्बर
में -23°C तथा जनवरी में -28°C
पाया जाता है। ग्रीनलैण्ड में शीत ऋतु का औसत
तापमान -42°C तथा ग्रीष्म ऋतु
का औसत तापमान -14°C रहता है।
ग्रीनलैण्ड के ईस्मिट्ट नगर में न्यूनतम तापमान -64°C तक अंकित किया गया है। ग्रीनलैण्ड व एण्टार्कटिक में वर्षा
सदैव हिमपात के रूप में होती है। अनुमानत: वर्ष भर में 35 सेन्टीमीटर हिमपात हो जाता है।
प्राकृतिक वनस्पति- इस प्रदेश में वर्ष पर्यन्त हिमाच्छादित
रहने के कारण वनस्पति का नितान्त अभाव है।
आर्थिक विकास- इस प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियां मानव के
विकास हेतु बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं हैं। अत: ये प्रदेश पूर्णतः निर्जन हैं। यहां
आर्थिक विकास की सम्भावनाएं नहीं हैं।
15. तिब्बत तुल्य या उच्च पर्वतीय प्रदेश
स्थिति विस्तार- इस प्रदेश में उच्च पर्वतीय प्रदेश या
हिमालय सदृश्य प्रदेश, उच्च पठारी
प्रदेश व तिब्बत सदृश्य प्रदेश सम्मिलित हैं। इस प्रदेश का विस्तार एशिया में
हिमालय, काराकोरम, कुनलुन, थ्यानशान, अल्टाई, सुलेमान, हिन्दुकुश तथा काकेशस पर्वत शृंखलाएं. यूरोप में आल्पस
पिरेनीज़ की श्रृंखलाएं, उत्तरी अमरीका
में राकी पर्वत श्रृंखला तथा दक्षिणी अमरीका में एण्डीज पर्वत श्रृंखलाएं सम्मिलित
हैं।
जलवायु- इस प्रदेश में उच्च पर्वतीय एवं उच्च पठारी
प्रदेशों के अन्तर्गत सागर तल से लगभग 2000 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले भू-भाग सम्मिलित हैं। इनका शीत ऋतु में औसत तापमान
लगभग 7°C तथा ग्रीष्म काल में 18°C
से 23°C के मध्य पाया जाता है। 2735 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले स्थानों का शीतकालीन तापमान 0°C तक गिर जाता है। 4600 मीटर से अधिक ऊंचे भू-भाग में तापमान हिमांक से
नीचे ही रहता है। इन भागों में दिन में बर्फीली तेज हवाएं चलती हैं। ग्रीष्मकाल
आने पर यहां तापमान बढ़ने लगता है।
उच्च पर्वतीय प्रदेशों में प्राय: मैदानों की अपेक्षा अधिक
वर्षा होती है। हिमालय के पर्वतीय ढालों पर स्थित दार्जिलिंग में 300
सेन्टीमीटर वर्षा होती है। अल्टाई के उत्तरी ढाल, आल्पस के दक्षिणी ढाल, रॉकी के पश्चिमी ढालों पर यथेष्ठ वर्षा होती है, लेकिन इनके विपरीत ढाल प्रायः शुष्क रहते हैं।
प्राकृतिक बनस्पति- उच्च भूमि प्रदेशों के ढालों पर
अक्षांशीय स्थिति, जलवायु तथा ऊंचाई
के अनुसार विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पति पाई जाती है। रॉकीज, आल्पस तथा एण्डीज पर्वतों पर मुख्यतः कोणधारी
वनों का बाहुल्य है। हिमालय पर्वत पर प्रायः 2000 से 3000 मीटर की ऊंचाई
पर कम आर्द्र शीतोष्ण वन सामान्यतः 3000 मीटर से 4000 मीटर तक की
ऊंचाई वाले भागों में अल्पाइन वन मिलते हैं जिनमें फर, बर्च तथा भोजपत्र के छोटे वृक्ष उगते हैं। इससे अधिक ऊंचाई
पर (4300 से 4500 मीटर / हिमरेखा) तक का भाग हिमानी निक्षेप
द्वारा निर्मित है। इन भागों में लिचिन काई) की प्रचुरता है। उसके बाद हिमाच्छादित
क्षेत्र है।
आर्थिक विकास- उच्च प्रदेशों में सूर्यमुखी ढालों पर कृषि
कार्य किया जाता है। आल्पस पर्वतों पर अंजीर, मक्का, राई तथा पटसन,
हिमालय पर्वत के ढालों पर चाय, मक्का, आलू, सेव, अखरोट, , चावल व जौ उत्पादित होता है; तिब्बतीय ढालों पर जौ, गेहूं, मटर तथा आलू,
आदि उगाया जाता है। इनके अतिरिक्त इन क्षेत्रों
में ज्वार, बाजरा, जिमीकन्द तथा विभिन्न फल व सब्जियां भी उगाई
जाती हैं। पर्वतीय ढालों पर सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि की जाती है।
अधिक ऊंचे पर्वतीय भागों में जहां कृषि कार्य सम्भव नहीं है
वहां पशुपालन किया जाता है। घास के ये उच्च पर्वतीय क्षेत्र अल्पाइन चरागाह (Alpine
Meadows) कहलाते हैं। इन क्षेत्रों
में पशुपालक अपने पशुओं को लेकर ग्रीष्मकाल में पहुंचते हैं तथा शीत में हिमपात के
कारण नीचे की ओर स्थानान्तरित हो। जाते हैं। हिमालय के इन चरागाहों को बुग्याल कहा
जाता है।
अल्पाइन चरागाहों में जहां सघन वन पाए जाते हैं वहां लकड़ी
काटने, छांटने का व्यवसाय
केन्द्रित हो गया है।
खनिज सम्पदा- उच्च पर्वतीय एवं पठारी क्षेत्रों विभिन्न
प्रकार के खनिज पदार्थ पाए जाते हैं। अल्टाई प्रदेश में सोना, चांदी, रांगा, जस्ता, तांबा, आदि के विशाल भण्डार पाए जाते हैं। आल्पस पर्वतों पर लौह-अयस्क, कोयला, चूनापत्थर, आदि पर्याप्त
मात्रा में उपलब्ध हैं। रॉकी पर्वतों पर सोना व कोयला पाया जाता है। एण्डीज
पर्वतों पर रांगे तांबे की खानें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। बोलीविया पठार टिन,
चांदी, तांबा, आदि खनिजों में धनी है।
पीरू के पठार पर तांबे की विशाल निधि सुरक्षित है। तिब्बत के पठार पर नमक, सुहागा, चांदी, रांगा, आदि उपलब्ध हैं। इस प्रकार उच्च भूमि प्रदेश
खनिज संसाधनों की दृष्टि से समृद्ध है, किन्तु यातायात की सुविधाओं के अभाव के कारण इनका पर्याप्त विदोहन नहीं हो पा
रहा है।
उयोग धंधे- उच्च भूमि प्रदेशों में यातायात के मार्गों की
असुविधा के कारण वृहत् उद्योग विकसित नहीं हो सके हैं। यहां केवल ऐसा सामान तैयार
किया जाता है जो मूल्य में अधिक किन्तु वजन में हल्का होता है। इसी कारण कश्मीर
में शाल, दुलाले, पश्मीने, गलीचे, आदि बनाने तथा
चांदीतांबे के बर्तनों पर मीनाकारी करने का कार्य किया जाता है। स्विट्जरलैण्ड के
निवासी घड़ियां, फीता, दवाइयां, विद्युत् उपकरण, आदि बनाने तथा लकड़ी पर खुदाई करने व लोहेतांबे पर नक्काशी करने का कार्य करते
हैं। इसी प्रकार ज्यूरा तथा ब्लैकफॉरेस्ट में हर प्रकार की घड़ियां बनाई जाती हैं।
पठारी प्रदेशों में भी प्रायः हल्के कुटीर उद्योग पाए जाते हैं जिनमें नम्दे,
कालीन, कम्बल, मिट्टी के बर्तन तथा
चमड़े की वस्तुएं बनाना प्रमुख हैं।
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