Article 15 Movie डाउनलोड कैसे करें

आर्टिकल 15’ शुरू होती है और पहली आवाज़ एक गीत की आती है- कहब त लाग जाई धक्क से। यानी कह दिया न, तो बहुत जोर से लग जाएगी और डायरेक्टर अनुभव सिन्हा ने इस फिल्म से ऐसा कुछ कह दिया है, जो कितने ही लोगों को जाने कितने दिनों तक, किस-किस तरह से, और कहां-कहां लगता ही रहेगा। क्योंकि बात दलितों की हो रही है, बात जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव की हो रही है। बात हो रही है जात और जात की औकात पर।

आर्टिकल 15’ की सबसे बेहतरीन बात ये है कि फिल्म दलितों के साथ होने वाले अन्याय की बात कर रही है। उनके हक की बात कर रही है। जाति समीकरण के चक्कर में घुन खाए पुलिसिया और पॉलिटिकल सिस्टम पर बात कर रही है। लेकिन कहीं भी, किसी दूसरी कम्युनिटी को नीचा नहीं दिखा रही।

इस फिल्म के खिलाफ करणी सेना से लेकर तमाम लोग ऐसी अफवाह फैला रहे हैं कि ये उनकी कम्युनिटी को नीचा दिखा रही है, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। आर्टिकल 15’ अपर कास्ट पर किसी तरह कीचड़ उछाले बिना अपने मेन मकसद में कामयाब होती है। और यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है।

Movie Cast
Movie: Article 15


Rating: 4.0/5.0


Cast : Ayushmann Khurrana, Isha Talwar, Sayani Gupta, Manoj Pahwa


Article 15 Movie download kaise kare





आर्टिकल 15 की कहानी
आर्टिकल 15’ के ट्रेलर की शुरुआत में ही आपको पेड़ से 2 बच्चियों की लाशें लटकती नज़र आई थीं, ट्रेलर में कहा गया था बेस्ड ऑन रियल इवेंट्स। इस पर लिखने के लिए मैंने गूगल पर सर्च किया तो यूपी के बदायूं से लेकर, बिहार के बेगूसराय और राजस्थान के बाड़मेर तक से ऐसी ख़बरें मिलीं। आर्टिकल 15’ की कहानी भी ऐसे ही मर्डर मिस्ट्री से होती है। लालगांव इलाके से 3 बच्चियां गायब होती हैं, 2 की लाशें पेड़ से लटकी हुई मिलती हैं, 1 लड़की लापता है।

पुलिस की पहली रिपोर्ट में दर्ज किया जाता है कि लड़कियां लेस्बियन थीं इसलिए दोनों के बाप ने ऑनर-किलिंग कर दी। आईपीएस ऑफिसर अयान रंजन यानी आयुष्मान खुराना एक नए नवेले ऑफिसर हैं, जिन्हें बतौर सज़ा इस इलाके में पोस्ट किया गया है। इस भयानक केस की जड़ में घुसने पर अयान को पता चलता है कि मामले की जड़ में जात है और इस जात को औकात बताने के लिए ही ऐसे घिनौने क्राइम को अंजाम दिया गया है।

इस क्राइम की गुत्थी सुलझाने में अपराधियों से ज्यादा खतरनाक है इलाके का कास्ट फैक्टर। अयान इस भयानक कास्ट सिस्टम, लूप होल्स से भरा पुलिस सिस्टम और पुलिस-पॉलिटिक्स के पूरे ताने-बाने से कैसे निपटते हैं और उस तीसरी बच्ची का क्या होगा, यही है आर्टिकल 15’ की कहानी।

 आर्टिकल 15’ का सबसे बड़ा हीरो है इसकी कहानी और स्क्रिप्ट जो अनुभव सिन्हा और गौरव सोलंकी ने लिखी है। ऊपर से फिल्म के डायलॉग इस कहानी को और एक पॉइंट ऊपर उठा देते हैं। औकात वो है जो हम देते हैंजैसे डायलॉग पिछले कुछ वक़्त में किसी फिल्म में नहीं थे।

कोई फिल्म परफेक्ट नहीं होती, ‘आर्टिकल 15’ भी नहीं है। फिल्म की पेस एक मसला है। एक वक़्त पर आपको लग सकता है कि आप काफी देर से थिएटर में हैं। कुछेक सीन न भी होते तो भी काम चल जाता। लेकिन इन्हें क्यों रखा गया ये समझ आता है। अपनी स्टोरी के बेस में एक क्राइम थ्रिलर सी लगने वाली ये फिल्म असल में कास्ट पॉलिटिक्स का रेशा-रेशा उधेड़ के रख देती है। और ये ज़रूरी भी था क्योंकि क्राइम के पीछे वजह ही कास्ट-पॉलिटिक्स थी।

फिल्म की सिनेमेटोग्राफी बेहद जानदार है। पूरी फिल्म में आपको कैमरा बोलता हुआ नज़र आएगा, जैसे कि आयुष्मान की एंट्री के वक़्त कैमरा कार की सीट पर रखी डिस्कवरी ऑफ़ इंडियाबुक से उठता हुआ आयुष्मान के चेहरे पर जाता है, जो दिल्ली से लालगांव आ रहे हैं और रास्ते में खेत खलिहान वाले नज़ारे देख रहे हैं।

डायरेक्टर अनुभव सिन्हा ने आर्टिकल 15’ एक ऐसी फिल्म बना दी है, जो दलितों के प्रति लोगों का नजरिया बदलने में मदद करेगी। ऐसी फिल्म बनाते वक़्त कांटे के दूसरी तरफ झुक जाना बहुत आसान होता, मगर अनुभव सिन्हा ने बिना दूसरी जातियों को कोसे, दलितों के मन की बात कर डाली। फिल्म के एंडिंग नोट पर ज़रूर ध्यान दें, आपको आज के एक फेमस जर्नालिस्ट की फेमस लाइन सुनने को मिलेगी, जिसे लेकर उनका काफी मज़ाक भी बनाया गया।

कुल मिलाकर आर्टिकल 15’ टिपिकल एंटरटेनर नहीं है। ये स्लो है और पॉलिटिक्स पर चलती फिल्म है, लेकिन फिल्म एक बहुत ज़रूरी बात कहने के लिए बनाई गई है। वो बात ही इतनी तीखी है कि लोग उसपर ध्यान नहीं देते।
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